जनसागर टुडे संवाददाता
परिवारों से केवल बुजुर्गों का साया ही नहीं उठ रहा, साथ ही खत्म हो रही है एक पीढ़ी पुरानी संस्कृति और और उससे जुड़े किस्से और कहानियां..गंगा स्नान और दशहरे के मेलों की कहानियां… उबले सिंघाड़े, बैलगाड़ी और तांगे का सफर.. रिश्तेदारों के तंबू में उड़द की दाल की खिचड़ी की दावत.. जलेबी और टिक्की की पार्टी के किस्से… शादी में 2 से 3 दिन बरात रुकने के किस्से.. हलवाई के हाथ बनी तहरी का स्वाद… फूफा जी के गुस्से का शिकार लोग.. मोहल्ले भर की चारपाई और बिस्तर इकट्ठे करने का तामझाम… डोंगा भर रसगुल्ले खाने वाले लोगों के किस्से… बारात के लिए पान वाले, नाई, प्रेस करने वाले, जूते पॉलिश करने वाले की कहानियां… स्कूल कॉलेज जाने के लिए 10-15 किलोमीटर साइकिल यात्रा की जद्दोजहद, पूरे गांव में सबसे पहला ग्रेजुएट कौन था, सबसे पहली सरकारी नौकरी किसकी लगी, इमरजेंसी और युद्ध के किस्से…मिट्टी की हंडिया में बनी सब्जी और पानी की रोटी का स्वाद…ताजे गुड़ और खेतों से तोड़े गन्ने का स्वाद. ऐसे कितने सारे किस्से और कहानियां सुनी हैं अपने पापाजी, मम्मीजी, मामाजी, ताऊ जी, चाचाजी आदि से…. पर अफसोस उस जमाने को जीने वाली पीढ़ी अब खत्म हो रही है और साथ ही खत्म हो रही है यह कहानियां।