मदद करने पर पीठ पीछे बड़ाई करने की साफगोई थी चो अजित सिंह में
जनसागर टुडे संवाददाता
नई दिल्ली : राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चो अजीत सिंह नही रहे। महामारी के काल ने उन्हे 6 मई को अपने गाल में समा लिया। चो साहब की सादगी और निश्छल राजनीती के उनके बहुतेरे किस्से अब लोगो की जुबान पर हैं। भीम आर्मी चीफ़ चन्द्रशेखर ने चो साहब के परिनिर्वाण पर सबसे पहले ट्वीट करके उन्हे श्रधान्जली प्रकट की और चो साहब की पीठ पीछे प्रशंसा करने के उनके एक व्यक्तित्व को रेखांकित किया।
दरअसल छोटे चो साहब 2014 और 2017 में साम्प्रदायिक राजनीतिक कुचक्र मे घिर गए थे। स्वच्छ और सादगीपूर्ण राजनीती के बावजूद वेस्ट उप्र ने उन्हे हासिये पर ला दिया था। मुजफ्फरनगर के दंगो ने चो साहब को असहाय बना दिया था।
जाट मुस्लिम का स्वभाविक समीकरण साम्प्रदायिक ताकतों ने ध्वस्त कर दिया था। इसी दौरान 2018 में बाबू हुकुम सिंह की मृत्यु के कारण कैराना लोक सभा क्षेत्र सीट पर उप चुनाव होना था। चो साहब इस सीट के चुनाव के बहाने जाट मुस्लिम के सौहार्द को बहाल करना चाहते थे। उन्होने मुलायम सिंह से बात करके यहां तब्बसुम हसन को लोकदल के टिकट पर उतारने का फैसला किया। भाजपा और मोदी ने इस सीट पर पूरी ताकत झोंक दी।
जाट मुस्लिम दंगे की याद दिलाते हुए हर हथ कन्डा अपनाया, सत्ता की धमक और पैसा बहाया, आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए मोदी और योगी ने अपनी पूरी फौज के साथ यहां डेरा डाल दिया।चो अजित सिंह इस चुनाव को जीत कर मुजफ्फरनगर दंगे का दंश धोना चाहते थे। उन्होने बसपा प्रमुख मायावती से मदद की गुहार की लेकिन मायावती ने चो साहब का फ़ोन तक नही उठाया। राजनीतिक अस्तित्व को लेकर बेहद चिंतित चो साहब कैराना पर जाट मुस्लिमो के साथ साथ जाटव समाज का साथ चाहते थे लेकिन लाख कोशिशो के बावजूद मायावती तैयार नही हुई।
चन्द्रशेखर तब अपने समाज की लडाई लड़ते हुए सहारनपुर जेल में बन्द थे।भीम आर्मी के साथियों ने उन्हे चो साहब का साथ देने की सलाह दी तो ये भनक भाजपा खेमे को लगी।भाजपा ने जाटव समाज के एक उच्च आई पी एस अधिकारी के माध्यम से चन्द्रशेखर से जेल में सम्पर्क साधा और उन्हे करोडो रुपये और मुकदमे वापिस लेने का ऑफ़र दिया,साथ ही ऑफ़र ना मानने पर ताजिंदगी जेल में सड़ाने की धमकी भी दी।
भीम आर्मी के अलावा जाट समाज के अनेक मौजिज लोग भी चन्द्रशेखर से सम्पर्क कर चो अजित सिंह के वेस्ट यू पी में भाईचारे को स्थापित करने के मिशन को समर्थन करने की पैरवी कर रहे थे।उधर मायावती चो साहब को समर्थन करने को लास्ट तक तैयार नही हुई। चन्द्रशेखर ने तय किया कि भाईचारे की खातिर वे चो अजित सिंह को सपोर्ट करेँगे,
उन्होँने चो साहब की कैराना उप चुनाव की उम्मीदवार तब्बसुम हसन के पक्ष में वोट करने के लिये जेल से चिट्ठी लिखी और भीम आर्मी के कार्यकर्ताओ से उस चिट्ठी को सभी जाटव मोह्ल्लो में बटवाने के निर्देश दिये। जेल से पहुंची चन्द्रशेखर की चिट्ठी ने दलितों में करंट फैला दिया। कैराना में जाट, मुस्लिम और दलित समीकरण ने मोदी को देश में पहली चुनौती पेश की, मुजफ्फरनगर के दंगे का दंश काबू में आया और भाईचारे की बुनियाद बिछ गई। आखिर लोक्दल प्रत्याशी तब्बसुम हसन विजयी हुई।
चन्द्रशेखर तो बहुत समय बाद जेल से रिहा हुए लेकिन चो अजित सिंह ने अनेक बार अपने लोगो के बीच चन्द्रशेखर द्वारा की गई इस राजनीतिक मदद की खुलकर प्रशंसा की। चो साहब किये गए एहसान को कभी नही भूलते थे और साफगोई और निश्छल तरीके से चीजो को स्वीकार करते थे, सादर श्रधान्जली छोटे चो साहब!