जनसागर टुडे संवाददाता
एक पुराना प्रेरणादायक चुटकुला है, जहां हमारी जिह्वा (जिभ) और दांत का संवाद बताया है। दांत जिह्वा से कहता है कि अगर मैं तुम्हें मेरे दोनों दांतों के बीच दबा लू तो तुम कट जाओगी। इस चुनौती का जिह्वा ने बहुत ही सुंदर जवाब दिया। अगर कुछ ऐसे शब्द मैने कह दिए तो तुम्हारे 32 के 32 धरती पर आ जाओगे। कितना प्रेरणादायक यह चुटकुला है।
मैं इससे हमारी जिह्वा का महत्व समझना चाहता हूं। अगर जिह्वा का सही इस्तेमाल हुआ तो बड़े से बड़े सम्राटों का हम दिल जीत लेंगे और अगर थोड़ी भी बोलने में गलती हो गई तो अपनों से ही हम हाथ धो देंगे। कितनी बड़ी बात है। जीभ चाहे तो हमें पूरे ब्रह्मांड पर राज करने लायक बना सकती है और अगर गलत चल गई तो राजा को भी फकीर बनाने में बनने में समय नहीं लगता।
भगवान ने हमे एक ही जिह्वा दी है। इसका मतलब इसे बहुत संभाल कर रखना है। इसका इस्तेमाल जब बहुत जरूरी हो तभी करना है।
भगवान ने कान दो दिए, आंख दो दी। कहने का तात्पर्य है, ज्यादा से ज्यादा सुनो, ज्यादा से ज्यादा देखो मगर जरूरत हो तभी बोलो। जितनी जरूरत हो, जो बोलने की जरूरत हो, उतना ही बोलो। वैसा ही बोलो जो सुनने वाले के सम्मान को ठेस नहीं। ऐसा नहीं किया तो हमें तकलीफ हो जाएगी।
इसी जिह्वा की बात को आगे ले जाते हुए, हम देखें कि कोई भी चीज जब हम ग्रहण करते हैं, खाते हैं तो सबसे पहले उसे जुबां पर रखते हैं। वहीं से उसका स्वाद शुरू होता है। यह स्वाद चंद पलों का होता है। हमने जो खाया, उसे जैसे ही गटक लिया, तो उसका स्वाद समाप्त हो गया। जब वह हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर की सारी यंत्रणाए काम करने लगती है। अगर हमने पौष्टिक खाद्य ग्रहण किया, वह हमारी यंत्रणा को स्वस्थ बना सकता है। उसका मददगार हो सकता है। इसके विपरीत अगर हमने हमारी जिह्वा के स्वाद के लालच में कुछ ऐसा ग्रहण किया जो हमारी शरीर की यंत्रणाओं के अनुकूल नहीं है, तो जिह्वा के स्वाद के लालच में, हम हमारे शरीर को नष्ट कर सकते हैं। शरीर की आयु को कम कर सकते हैं। अपने आप को तकलीफ में डाल सकते हैं ।
यह सोचना जरूरी है। कुछ चीजें करेले जैसी, हो सकता है जिह्वा के स्वाद को कम पसंद आए, मगर वह शरीर के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। कहने का मतलब है की चंद पल के कड़वे पन के लिए, हम हमारे शरीर के सुख चैन को दांव पर न लगाएं। कहने का उद्देश है की जीभ के स्वाद का महत्व है या शरीर का संचालन महत्व का है। स्वस्थ शरीर व लंबी सुखदायी आयु जरूरी है। यह आप लोगों को, सबको सोचना है।
अगर उदाहरण दूं, तो केमिकल फर्टिलाइजर हमारी धरती से ऊपर ज्यादा दे सकता है। तो हमें वह अच्छा लगता है। मगर हम यह भूल जाते हैं कि यह केमिकल फर्टिलाइजर हमारी धरती को धीरे-धीरे नष्ट कर रहा है। इसकी उपज को कम कर देगा। इससे जो उत्पादन होता है, वह उत्पादित माल शायद गुणकारी न हो। दिखने में अच्छा हो सकता है, जुबान के स्वाद के लिए अच्छा हो सकता है।
मेरा, तिलक राज अरोड़ा, का यह मानना है कि तत्परता सुक्ष्म कालीन के स्वाद के लिए हम आने वाले समय दीर्घकालीन में नुकसान ना उठाएं। हम हमारे शरीर में उसी चीज का सेवन करें जो शरीर के लिए अच्छा है। शायद जुबान को वह ना भाए। जुबान का काम पल भर का रहता है, शरीर की यंत्रणा दिन भर चलती है। इसके बारे में भी सब लोग सोचे। जो बोलो वह नाप तोल कर बोलें। जरूरी हो उतना ही बोलें। जहां और जब जरूरी हो तभी बोलें। शरीर को जब जरूरी हो तभी खाएं। जितना जरूरी हो उतना ही खाएं। जो जरूरी हो वही खाए। कभी कभार स्वाद बदलने कुछ भी पिए या खाए पर रोजाना भोजन पौष्टिक ही खाए। अपना जीवन खेलते कूदते मौज में बिताए। पलंग रात्रि विश्राम के लिए है, जीवन बिताने के लिए नहीं। एक सोच।