उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर के एक महिला स्वयं सहायता समूह ने गाय के गोबर से ऐसे दीये बनाए हैं जो अंत में खुद जलकर राख में तब्दील हो जाएंगे। इसकी एक और खासियत यह भी है कि जब यह खुद जलेगा तो वातावरण को प्रदूषित नहीं करेगा।
गौरतलब है कि चीन से तनातनी के बाद केंद्र सरकार ने स्वदेशी को बढ़ावा दिया है। भारतीय जनमानस भी इस बार दिवाली के दौरान चीन के झालर-बाती और दीयों के बजाए मिट्टी के दीयों की ओर आकर्षित हो रहा है। वहीं, कई उद्यमियों ने लोगों को आकर्षित करने के लिए न सिर्फ आकर्षक बल्कि इको फ्रेंडली दीये बनाने शुरू कर दिए हैं। गोरखपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की महिला शाखा सहकार भारती से जुड़ी महिलाओं ने मीनाक्षी राय के नेतृत्व में मिट्टी के बजाए गोबर से दीयों का निर्माण करना शुरू कर दिया है। इनमें से कुछ दीये ऐसे भी बनाए जा रहे हैं जो अंत में खुद जलकर राख हो जाएंगे।
छठ पर्व को ध्यान में रखकर शुरू किया निर्माण
दिवाली के अलावा सहकार भारती से जुड़ी महिलाएं गोबर से न सिर्फ दिवाली बल्कि छठ पर्व के लिए विशेष प्रकार के दीये बना रही हैं। छठ पर्व के दौरान व्रती महिलाएं नदी तट या अन्य किसी जलाशय के किनारे दीये जलाती हैं और घर लौट जाती हैं। ऐसे में मिट्टी के दीये तट पर बिखरे रहते हैं और प्रदूषण फैलता है। इसी का उपाय इन महिलाओं ने निकाला है। ऐसे दीये तैयार किए हैं जो अंत में खुद जलकर राख बन जाएंगे। औषधीय मिश्रण से तैयार होने की वजह से ये दीये जलने के बावजूद वातावरण को प्रदूषित नहीं करेंगे।
उपले के पाउडर की मात्रा बढ़ाकर बनाए जाते हैं ये विशेष दीये
मीनाक्षी राय ने बताया कि इन दीयों के निर्माण में मैदा, लकड़ी, गाय के गोबर से बने उपले का पाउडर और ग्वार गम का इस्तेमाल किया जाता है। दिवाली और छठ पर्व के लिए अलग-अलग तरह के दीयों का निर्माण किया जा रहा है। गाय के गोबर से बने उपले के पाउडर की मात्रा के अनुपात को बढ़ाकर जल जाने वाले दीयों का निर्माण किया जा रहा है।
एक लाख दीये किए जा रहे तैयार
मीनाक्षी राय ने बताया कि दिवाली और छठ को ध्यान में रखकर गोबर के करीब एक लाख दीये तैयार किए जा रहे हैं। सूरजकुंड धाम, राजघाट पर आयोजित होने वाले दीपोत्सव में भी इन दीयों का इस्तेमाल होगा।