पांच दिनों तक चलने वाला दीपोत्सव इस बार चार दिनों का ही होगा। 13 नवंबर को धनतेरस, 14 को नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली) और दिवाली, 15 को अन्नकूट महोत्सव व गोवर्धन पूजा एवं 16 नवंबर को भाई दूज मनाई जाएगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस बार दिवाली पर सुबह आयुष्मान योग, शोभन एवं सिद्धि नामक महा औदायिक योग बन रहे हैं, जो सिद्धियों को प्रदान करने के साथ ही ऐश्वर्य में वृद्धि करने वाला साबित होगा।
पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार, इस साल दीपोत्सव 13 नवंबर से प्रारंभ होकर 16 नवंबर को भाई दूज के साथ समाप्त होगा। मान्यता है कि जिस दिन सूर्यास्त के बाद एक घड़ी अधिक तक अमावस्या तिथि रहे उस दिन दिवाली मनाई जाती है। इस साल अमावस्या की तिथि 13 नवंबर को दोपहर दो बजकर 18 मिनट से प्रारंभ होगी, जोकि 15 नवंबर की सुबह 10 बजकर 37 मिनट तक रहेगी।
ऐसे में 14 नवंबर का दिन महालक्ष्मी पूजन के लिए उपयुक्त रहेगा। 15 नवंबर को सुबह 10 बजकर 37 मिनट के बाद गोवर्धन पूजन व अन्नकूट महोत्सव मनाया जाएगा। 16 नवंबर को प्रतिपदा सुबह सात बजकर छह मिनट तक है। उसके बाद द्वितीय तिथि प्रारंभ हो जाएगी। इस तिथि में भाई दूज मनाई जाएगी।
ऐसे करें माता लक्ष्मी की पूजा
ज्योतिषाचार्य मनीष मोहन के अनुसार, एक चौकी लें उस पर साफ कपड़ा बिछाकर मां लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी की प्रतिमा रखें। मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम की तरफ होना चाहिए। हाथ में गंगाजल लेकर प्रतिमाओं पर छिड़कें। इसके बाद मां पृथ्वी को प्रणाम करें और आसन पर बैठकर हाथ में गंगाजल लेकर पूजा करने का संकल्प लें। एक जल से भरा कलश लें जिसे लक्ष्मी जी के पास चावलों के ऊपर रखें। कलश पर मौली बांधकर ऊपर आम का पल्लव रखें। साथ ही सुपारी, दूर्वा, अक्षत, सिक्का रखें। इस कलश पर एक नारियल रखें।
नारियल लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि उसका अग्रभाग दिखाई देता रहे। यह कलश वरुण का प्रतीक है। सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें। फिर लक्ष्मी जी की आराधना करें। देवी सरस्वती, भगवान विष्णु, मां काली और कुबेर की भी पूजा करें। पूजा करते समय 11 या 21 छोटे सरसों के तेल के दीपक और एक बड़ा दीपक जलाना चाहिए। भगवान को फूल, अक्षत, जल और मिठाई अर्पित करें। अंत में गणेश जी और माता लक्ष्मी की आरती उतार कर भोग लगाकर पूजा संपन्न करें।