नोएडा:
दिवाली का पर्व आते ही सबसे पहले लोगों के जेहन में आता है एक जलता हुआ मिट्टी का दिया।लेकिन आजकल बाजारवाद के चलते चायनीज झालर ने इसकी जगह ले ली है।इस दिवाली आप भी चायनीज झालर की जगह मिट्टी के दिए जलाएं।ये पर्यावरण के लिए नुकसानदायक नहीं होते साथ ही बायोडिग्रेडेब भी होते हैं।इन दीयों को ज़्यादातर गरीब तबके के लोग बनाते हैं।इन दीयों खरीदने के बाद ये लोग अपनी दिवाली मना पाते है।इन्ही दीयों में अब गोबर से बने दीये आने से लोगों की दिवाली अब इको फ्रेंडली हो जायेगी।आपको बता दे कि गोबर से बने दीये से न केवल इस त्यौहार को रोशन कर सकते हैं बल्कि इस्तेमाल के बाद खाद के तौर पर भी इनका इस्तेमाल हो सकता है।सबसे ख़ास बात है कि इन दीयों को जलाने से घर खुशबू से भर जाएगा क्योंकि इन दीयों को बनाने में लेमन ग्रास और मिनट इसेंशियल ऑइल का इस्तेमाल हुआ है।इसी क्रम में जिले को प्रदूषण मुक्त बनाने की पहल करते हुये नारी शक्ति संगठन की ममता शर्मा(राष्ट्रीय अध्यक्ष) और पुष्पा रावत(सचिव) के द्वारा गाय के गोबर से बने दीए और मूर्ति का बनाने का कार्य किया जा रहा है।इस बार दिवाली को रोशन करने के लिए इन दीयों को गाय के गोबर,घी और इसेशियान से तैयार किए जा रहे हैं।
नारी शक्ति संगठन की सदस्य ममता शर्मा और पुष्पा रावत के बताया कि इन दीयो से होने वाली कमाई का बड़ा हिस्सा गाय के रख -रखाव और उन्हें अच्छा खिलाने- पिलाने में जाता है।ताकि गाय से मिलने वाले प्रोडक्शन की गुणवत्ता बढ़े।गाय के गोबर से बने होने के कारण यह दिए मिट्टी में मिलकर खाद का काम करते हैं।यानी दिवाली के पुराने दिए को इधर-उधर फेंकने की वजह इनको खाद के तौर पर इस्तेमाल हो सकता है ममता शर्मा ने बताया कि इन दीयो में लेमन ग्रास और मिंट जैसे इसेशियान का इस्तेमाल किया गया है जिससे दीए को जलाकर मच्छरों को भी दूर भगाया जा सकता है।इन दीयो से आने वाली सुगंध न सिर्फ आपके आस-पास खुशबू भी बिखरती है बल्कि इस खुशबू से आसपास के नकारात्मकता भी दूर होती है।इन दियो की रोशनी के साथ बिना किसी प्रदूषण के दिवाली को रोशन करने का एक विकल्प मौजूद है।