अजरबैजान एक इस्लामिक बहुल देश है. जबकि अर्मेनिया पूरा ईसाई आबादी वाला देश है. इस पूरे मामले तुर्की की भूमिका संदिग्ध रही है. माना जा रहा है कि तुर्की ही वही देश है जो अजरबैजान और अर्मेनिया को भड़का रहा है.
अजरबैजान और आर्मेनिया में युद्ध थम नहीं रहा है लेकिन इस्लामिक कट्टरपंथ की राह पर चल रहा देश तुर्की युद्ध की आग बुझाने की बजाय इसे भड़काने में लगा हुआ है. तुर्की ने कहा है कि वो अजरबैजान में अपनी सेना भेजने के लिए तैयार है. तुर्की के उपराष्ट्रपति ने CNN से बातचीत में ये बात कही है.
शुरुआत से ही तुर्की पर ये आरोप लग रहा है कि वह न सिर्फ इस युद्ध को भड़का रहा है बल्कि खुद को एक मुस्लिम दावेदारी एक बेहतरीन देश के तौर पर भी पेश कर रहा है. अब तुर्की की ओर से अजरबैजान में सेना भेज देने का आधिकारिक बयान सामने आ गया है.|
अजरबैजान एक इस्लामिक बहुल देश है,जबकि अर्मेनिया पूरा ईसाई आबादी वाला देश है. इस पूरे मामले तुर्की की भूमिका संदिग्ध रही है. माना जा रहा है कि तुर्की ही वही देश है जो अजरबैजान और अर्मेनिया को भड़का रहा है. अब तुर्की का ये बयान दोनों देशों के बीच युद्ध को और ज्यादा भड़का देगा. अगर ऐसा होता है तो अमेरिका और रूस खुलकर अर्मेनिया के समर्थन में आ सकते हैं.
अजरबैजान का दो और शहरों पर कब्जा
अजरबैजान और अर्मेनिया के बीच भीषण युद्ध जारी है. दोनों देश एक-दूसरे पर जबरदस्त बमबारी कर रहे हैं. सीजफायर के दावों के बीच ताबड़तोड़ बमबारी से अजरबैजान का दो और शहरों पर कब्जा हो गया है. अजरबैजान और अर्मेनिया ने विवादित क्षेत्र में लड़ाई को रोकने के लिए दूसरी बार सहमत होने के कुछ घंटों बाद ही रविवार को नए संघर्ष विराम के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था.
अर्मेनिया और अजरबैजान दोनों ने नागोर्नो-करबाख क्षेत्र में रविवार मध्यरात्रि (2000 जीएमटी) से शुरू होने वाले एक नए ‘मानवीय संघर्ष विराम’ पर सहमति व्यक्त की थी. इसकी घोषणा दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों ने शनिवार शाम को बयान जारी करके की थी. यह दूसरा संघर्ष विराम था जिस पर दोनों पक्ष सहमत हुए थे. इससे पहले 9 अक्टूबर को मास्को में लंबी वार्ता के बाद संघर्ष विराम पर पहली सहमति 10 अक्टूबर को बनी थी.