ग्लूकोमा के ख़ामोश ख़तरे से मिलकर लड़ें, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए
विश्व ग्लूकोमा सप्ताह – 9 से 15 मार्च 2025
थीम – ग्लूकोमा मुक्त दुनिया के लिए एकजुट होना
ग्लूकोमा, जिसे आमतौर पर “निश्शब्द दृष्टि चोर” कहा जाता है, अंधत्व का दूसरा सबसे प्रमुख कारण है। यह रोग धीरे-धीरे आंखों की दृष्टि को नुकसान पहुंचाता है और जब तक लक्षण स्पष्ट रूप से उभरते हैं, तब तक दृष्टि हानि स्थायी हो सकती है। विश्व ग्लूकोमा सप्ताह 2025 का विषय “ग्लूकोमा-मुक्त विश्व के लिए एकजुटता” है, जिसके अंतर्गत इस बीमारी के बढ़ते प्रभाव, आधुनिक जीवनशैली के कारण बढ़ते जोखिम और नवीनतम तकनीकों की सहायता से शीघ्र निदान एवं उपचार की संभावनाओं पर प्रकाश डाला जा रहा है।
पारंपरिक रूप से ग्लूकोमा को वृद्धावस्था से जुड़ी समस्या माना जाता था, लेकिन हाल के वर्षों में यह युवाओं में भी तेजी से फैल रहा है। लंबे समय तक स्क्रीन के सामने बैठने, अनुचित आहार, धूम्रपान और अनियमित नींद जैसी आधुनिक जीवनशैली से जुड़ी आदतें इस बीमारी के बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेदार हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में 10-35 वर्ष की आयु के लोगों में दृष्टि संबंधी विकारों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। अत्यधिक स्क्रीन टाइम, अस्वस्थ खान-पान और नींद की कमी जैसी आदतें आंखों के अंदर दाब को बढ़ाने का कारण बनती हैं, जो ग्लूकोमा का प्रमुख जोखिम कारक है।
सेंटर फ़ॉर साइट ग्रुप ऑफ़ आई हॉस्पिटल्स के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डॉ. महिपाल सिंह सचदेव ने बताया कि ”ग्लूकोमा एक गंभीर नेत्र रोग है, जो ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचाकर धीरे-धीरे दृष्टि छीन लेता है। प्रारंभिक चरणों में इसके लक्षण स्पष्ट नहीं होते, जिससे लोग इसे सामान्य आंखों की थकान समझकर अनदेखा कर देते हैं। हालांकि, समय के साथ यह रोग दृष्टि को अपूरणीय क्षति पहुंचा सकता है। इसके प्रारंभिक लक्षणों में सिरदर्द, धुंधली दृष्टि, रात में देखने में कठिनाई, रोशनी के चारों ओर हलो दिखना और आंखों में असामान्य दबाव महसूस होना शामिल हैं। चूंकि यह रोग प्रारंभिक चरणों में बिना किसी लक्षण के बढ़ता है, इसलिए नियमित नेत्र जांच आवश्यक है ताकि समय रहते इसका पता लगाया जा सके।“
आधुनिक जीवनशैली इस रोग के बढ़ते जोखिम के पीछे एक प्रमुख कारण बन रही है। डिजिटल उपकरणों का अत्यधिक उपयोग आंखों पर दबाव बढ़ाता है, जिससे ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंच सकता है। धूम्रपान और अत्यधिक शराब सेवन भी आंखों के लिए हानिकारक होते हैं, क्योंकि ये आवश्यक पोषक तत्वों को कम कर देते हैं और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को बढ़ाते हैं। पोषण की कमी, विशेष रूप से विटामिन ए, सी, और ई की अपर्याप्तता, ग्लूकोमा के जोखिम को और अधिक बढ़ा सकती है। अनियमित नींद के पैटर्न और निष्क्रिय जीवनशैली भी आंखों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, जिससे ऑप्टिक नर्व को आवश्यक रक्त संचार नहीं मिल पाता।
डॉ. महिपाल ने आगे बताया कि “तकनीक में प्रगति के साथ, ग्लूकोमा की पहचान और प्रबंधन अब अधिक सुलभ हो गया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित स्क्रीनिंग सिस्टम, ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी (OCT) और स्मार्ट कॉन्टैक्ट लेंस जैसी आधुनिक तकनीकें ग्लूकोमा के शुरुआती लक्षणों की पहचान में मदद कर रही हैं। न्यूनतम आक्रामक सर्जरी (MIGS) और चयनात्मक लेजर ट्राबेकुलोप्लास्टी (SLT) जैसे नवीनतम उपचार दृष्टि को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। हालांकि, तकनीकी प्रगति के बावजूद, रोकथाम ही इस बीमारी से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है। भारतीय युवाओं को नियमित नेत्र जांच करवानी चाहिए ताकि ग्लूकोमा जैसी गंभीर बीमारी से बचा जा सके। संतुलित आहार, जिसमें गाजर, हरी पत्तेदार सब्जियां, शकरकंद और मछली जैसे विटामिन ए से भरपूर खाद्य पदार्थ शामिल हों, आंखों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। स्क्रीन का अधिक उपयोग करने वालों को 20-20-20 नियम का पालन करना चाहिए, जिसमें हर 20 मिनट बाद 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखने की सलाह दी जाती है। धूम्रपान और शराब के सेवन से बचना भी आंखों की सेहत के लिए फायदेमंद होगा। नियमित व्यायाम रक्त संचार को बढ़ाकर ऑप्टिक नर्व की रक्षा करने में सहायक सिद्ध हो सकता है, जबकि पर्याप्त नींद आंखों की कार्यक्षमता को बनाए रखने में मदद करती है।“
ग्लूकोमा केवल वृद्धावस्था से जुड़ी बीमारी नहीं रह गई है, बल्कि यह तेजी से एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है। स्वास्थ्य पेशेवरों, नीति निर्माताओं और आम जनता के संयुक्त प्रयासों से हम इसे रोकने के लिए प्रभावी कदम उठा सकते हैं। शीघ्र निदान, जीवनशैली में आवश्यक परिवर्तन और आधुनिक चिकित्सा तकनीकों का लाभ उठाकर इस गंभीर बीमारी के प्रभाव को कम किया जा सकता है। अब समय आ गया है कि हम सभी एकजुट होकर ग्लूकोमा-मुक्त भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाएं और अगली पीढ़ी की दृष्टि को सुरक्षित रखें।