कोरोना ने समाज में एक नए किस्म की बीमार मानसिकता पैदा कर दी हैै। ऐसा पहली बार है कि लोगों का भय सामूहिकता में है, जिससे एंग्जायटी (चिंता, तनाव) के रोगी पहले से दोगुना हो गए हैं। लोग घबराए हैं, वे भविष्य को लेकर चिंतित हैं, चिड़चिड़े हो गए हैं। उनकी सांस फूल रही है लेकिन इस सामूहिक भय की भावना में आत्महत्या की मानसिकता बहुत कम हुई है।
लोग एंग्जायटी में हैं लेकिन यह सोच कर दिलासा दे रहे हैं कि संक्रमण का खतरा सबको है। लॉकडाउन के बाद से एंग्जायटी के ये नए किस्म के रोगी मनोरोग विशेषज्ञों के पास पहुंच रहे हैं। कोराना काल में किए गए इंडियन साइकेटरी सोसाइटी के सर्वे से खुलासा हुआ है कि इस वक्त 70 फीसदी लोग एंग्जायटी की गिरफ्त में हैं। इनमें ज्यादातर नए रोगी हैं।
मनोरोग विशेषज्ञों के यहां आने वाले रोगियों के आंकड़ों के हिसाब से देखें तो अभी तक एंग्जायटी के 10 फीसदी रोगी रहते थे लेकिन अब इनकी संख्या 30 फीसदी हो गई है। इनमें नए रोगी 70 फीसदी हैं। वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. उन्नति कुमार का कहना है कि एंग्जायटी के साथ लोगों में कोरोना के कारण पैनिक डिस्आर्डर हो रहा है।
लोग घर के बाहर सायरन व फेरी वाले की आवाज से भी चौंक रहे हैं। एंग्जायटी में लोग जुकाम, खांसी, सांस फूलने जैसे लक्षण महसूस करते हैं। यह नए रूप की एंग्जायटी है। उनका कहना है कि इस भय की सामूहिकता में लोगों में आत्महत्या के विचार कम आ रहे हैं क्योंकि लोग अपने डर को एक-दूसरे से शेयर कर रहे हैं।
आत्महत्या की भावना तब आती है जब व्यक्ति अकेला पड़ जाता है। जीएसवीएम मेडिकल कालेज के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. गणेश शंकर का कहना है कि कोरोना से मानसिक तनाव की स्थिति सामूहिकता में बढ़ी है। आशंका के कारण स्ट्रेस और एंजाइटी बढ़ गई है।
कोरोना काल में यह बढ़ा
नशे की प्रवृत्ति, घरेलू हिंसा, बच्चों का बात न मानना, अभद्रता की आदत, आर्थिक स्थिति को लेकर चिंता। नींद कम आना, भूख कम लगना, चिड़चिड़ापन, मन का दुखी रहना
यह करें
दोस्तों, घर वालों से विचार साझा करें।
विचारों को कागज पर लिखें।
नियमित योग भी करें।
मन में अच्छे आशावादी विचार लाएं।
यह सोचें कि अच्छा और बुरा दोनों वक्त गुजर जाता है।
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