बुगरासी संवाददाता यतेंद्र त्यागी
बुगरासी।कभी मुंडेर पर काँव काँव करने वाले कौए सिर्फ़ गीतों और गानों तक ही सीमित होकर रह गये हैं।न तो आज कौआ मुंडेर पर बैठकर किसी मेहमान के आने की सूचना देने के लिये काँव काँव करता है और न ही पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिये ग्रास करने के लिये मिल रहे हैं ।इसका कारण यह है कि कौए लगातार विलुप्त होते जा रहे हैं।सामाजिक वानिकी विभाग द्वारा कराये गये सर्वे में भी इसका खुलासा हुआ है कि पिछले तीन दसक में करीब लाखों कौए विलुप्त हो चुके हैं।आज स्थिति यह हो गई है कि पितृ पक्ष में भोजन का प्रथम ग्रास कौओं को खिलाने के लिये कौए ढूंढने से भी नही मिल रहे हैं।हिंदू संस्कार में कौए को पूर्वजो का प्रतीक माना जाता है।पंडित राकेश शर्मा की मानें तो पितृ पक्ष में पुरखों की आत्मा की शांति के लिये कौए को भोजन का पहला ग्रास दिया जाता है।कौआ न मिलने से भोजन का पहला ग्रास कौओ की जगह गाय को ही पहला ग्रास खिलाकर लोग अपने पितरों को संतुष्ट कर रहे हैं।जिस हिसाब से कौओ का अस्तित्व खत्म हो रहा है उसे देखकर लगता है कि एक दिन सिर्फ़ कागजों में ही रह जायेंगे। कौओं को प्राकृतिक आवास भी नही मिल रहा है।लगातार खत्म होती जा रही हरियाली पेड पौधों की जगह ऊँची इमारतें और टावरों की अधिकता के कारण इनके बसेरे नही बन पा रहे हैं।कौओं के प्रजनन की क्षमता भी प्रभावित हो रही है।