जनसागर टुडे संवाददाता : अर्जुन सिंह
बहसूमा। बहसूमा क्षेत्र के गांव मौडकला के शिव मंदिर मे हवन व भंडारे का आयोजन किया गया। जिसमें प्रदीप देशवाल पूर्व डायरेक्टर ने बताया कि हवन अथवा यज्ञ भारतीय परंपरा अथवा हिंदू धर्म में शुद्धिकरण कार्यक्रम कांड है कुंड में अग्नि के माध्यम से ईश्वर की उपासना करने की प्रक्रिया को कहते हैं हवि, हव्य अथवा हविष्य वह पदार्थ है जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती है।( जो अग्नि में डाले जाते हैं) हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करने के पश्चात इस पवित्र अग्नि में फल ,शहद ,घी इत्यादि पदार्थों की आहुति प्रमुख होती है। वायु प्रदूषण को कम करने के लिए भारत देश में विद्वान लोग यज्ञ किया करते थे और तब हमारे देश में कई तरह के रोग नहीं होते थे शुभकामना, स्वास्थ्य एवं समृद्धि इत्यादि के लिए भी हवन किया जाता है। अग्नि किसी भी पदार्थ के गुणों को कई गुना बढ़ा देती है जैसे अग्नि में अगर मिर्च डाल दी जाए तो उस मिर्च का प्रभाव बढ़ कर कई लोगों को दुख पहुंचाता है।
नवग्रह शांति के लिए समिधा
सूर्य की समिधा मदार की, चंद्रमा की पलास की, मंगल की खैर की, बुध की चिड़चिड़ा की, बृहस्पति के पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु दुर्वा की और केतु की कुशा की संविदा कही गई है।
स्वास्थ्य के लिए हवन का महत्व
प्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमंडल रहते हैं ।सर्दी ,गर्मी ,नमी, वायु का भारीपन ,हल्कापन, धूल, धुआं बर्फ आदि का भरा होना। विभिन्न प्रकार के कीटाणुओं की उत्पत्ति वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है इसलिए कई बार वायुमंडल स्वास्थ्य कर होता है कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण करने के लिए हवन में ऐसी औषधियों प्रयुक्त की जाती है जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।
हवन के लाभ
राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान द्वारा किए गए एक शोध में पाया गया है की पूजा पाठ और हवन के दौरान उत्पन्न औषधीय धुआं हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करता है जिससे बीमारी फैलने की आशंका काफी हद तक कम हो जाती है लकड़ी और औषधीय जड़ी-बूटियों जिन को आम भाषा में हवन सामग्री कहा जाता है को साथ मिलाकर जलाने से वातावरण में जहां शुद्धता आ जाती है वही हानिकारक जीवाणु 94% तक नष्ट हो जाते हैं। इस अवसर पर समस्त ग्राम वासियों का सहयोग रहा।