महिला सशक्तिकरण की प्रतीक सावित्रीबाई फुले की जयंती मनाई
गुलावठी। नगर के होली पार्क के निकट परमानंद सैनी के आवास पर देश की पहली महिला शिक्षिका महान समाजसेविका तथा शोषितों व वंचितों के उत्थान के लिए आजीवन समर्पित रहीं माता सावित्रीबाई फुले जी की जयंती बालिका दिवस के रूप में मनाई गई। लोगो ने माता सावित्रीबाई फुले के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर एवं पुष्प अर्पित कर उन्हें शत शत नमन करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर राजीव सैनी ने कहा कि सावित्रीबाई फुले को समाज सेविका, नारी मुक्ति आंदोलन में हिस्सा लेने वाली और देश की पहली अध्यापिका के रूप में जाना जाता है। सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं के लिए भी लम्बी लड़ाई लड़ी और उनकी स्थिति में सुधार के लिए बहुत योगदान दिया। परमानंद सैनी ने कहा कि माता सावित्रीबाई फुले की जयंती हर साल 3 जनवरी को मनाई जाती है। सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका थीं। उनका जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक गांव में हुआ था। सावित्रीबाई फुले को सम्मानित करने के लिए ही हर साल इस दिन को मनाया जाता है। रजनीश सैनी ने कहा कि माता सावित्रीबाई फुले कठिनाइयों को पार कर देश की पहली शिक्षिका बनीं। सावित्रीबाई फुले का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था। पहले के समय में दलितों को शिक्षा आदि से वंचित रखा जाता था लेकिन सावित्रीबाई फुले ने इन सब कुरीतियों से लड़कर अपनी पढ़ाई जारी रखी। उनके समाज में छुआ-छूत का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने इन सबसे हार न मानकर अपनी शिक्षा जारी रखी। इसके बाद उन्होंने अहमदनगर और पुणे में अध्यापक बनने की ट्रेनिंग पूरी की और बाद में अध्यापिका बनीं। हरीश सैनी ने कहा कि सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर कई आंदोलनों में भाग लिया। जिसमें से एक सती प्रथा भी था। उन्होंने विधवा होने पर महिलाओं का मुंडन किया जाता था जिसके खिलाफ उन्होंने मुखर होकर नाइयों के खिलाफ आंदोलन किया था। इस मौके पर परमनानंद सैनी, राजीव सैनी, रजनीश सैनी, हेम सैनी, बबली सैनी, गोपाल सैनी, मूलचंद सैनी, दीपक सैनी, धीरज सैनी, दिवाकर सैनी, विजय सैनी, विपुल सैनी, संदीप सैनी आदि लोग मौजूद रहे।