Sunday, November 24, 2024
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होमआलेखद डार्केस्ट डेस्टनी उपन्यास: एक संघर्ष गाथा

द डार्केस्ट डेस्टनी उपन्यास: एक संघर्ष गाथा

राजकुमारी राजसी का उपन्यास ‘द डार्केस्ट डेस्टिनी ‘ हाशिए के समाज को समर्पित है जिसमें ट्रान्सजेंडर समुदाय के संघर्षों एवं समस्याओं का सजीव चित्रण किया गया है। नायिका अमृता का जब जन्म होता है तो उसका पिता (मांझी) उसको अपशकुन मानता है तथा उत्तम चिकित्सा प्रबंधन नहीं होने के कारण उसकी मां (महुआ) की मृत्यु हो जाती है किंतु परिवार और समाज इसका ठीकरा अमृता पर फोड़ता है

क्योंकि वह ट्रांसजेंडर है, हालांकि इसमें उसकी कोई दोष नहीं यह प्राकृतिक है।उसका पालन-पोषण इमरतिया करती है और उसे अपना आधुनिक नाम अमृता देती है। आज भी भारतीय समाज अर्द्धनारीश्वर की वंदना तो करता है लेकिन तृतीय लिंग को सामाजिक, सार्वजनिक व संस्थाओं में पर्याप्त सम्मान नहीं देता। अमृता ट्रांसजेंडर होने के साथ आदिवासी भी है। स्कूली शिक्षा ग्रहण करने के लिए उसे आर्थिक स्तर पर कठिनाईयां झेलनी पड़ती है

उसका दोस्त अमित मदद करता है किंतु एक दिन मौका पाकर उसके चरित्र के साथ खिलवाड़ कर दुर्व्यवहार की कोशिश करता है।अमृता साहसिक थी इसलिए वहां से भाग निकलती है और इमरतिया को सब कुछ बताती है लेकिन अमृता के परिवार वाले उसका समर्थन नहीं करते।

कठिनाई को झेलते हुए अमृता कॉलेज में नामांकन करवाती है जहां उसे ‘रानी मां ‘ समर्थन देती है यहां ट्रान्सजेंडर समाज का उत्कृष्ट चेहरा सामने आता है जहां रानी स्वयं किए गए कार्य में संलग्न न कर कुछ बेहतर करने के लिए प्रेरित करती हैं। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान अमृता व अनुराग के बीच प्रेम के पौधे पनपने लगते हैं लेकिन यह पौधा जल्द ही ठूंठ हो जाता है जब अनुराग अमृता से शादी के विषय में माता-पिता को बताता है

कि अमृता तृतीय लिंगी है।,तब वह वंश वृद्धि और संपत्ति भोग को लेकर झल्लाते है। अभिजात्य वर्ग की संवेदनहीनता वहां दिखती है जब नैन्सी की मांगलिक होने पर अमृता के साथ रहने से अनुराग और नैनसी का वैवाहिक जीवन समृद्ध होगा ।ऐसी बेतुकी की जाती है। तृतीय लिंगी वर्ग के आशीर्वाद फलीभूत होते हैं ऐसी भ्रामक बातें फैलाकर मुख्यधारा का समाज उन्हें सदियों से हाशिए पर रख रहा है। हालांकि ये समाज अपने वर्ग के बारे में फ़ैलाए गए मिथ्या बातों का विरोध कर रहा है और अपने व्यक्तिगत और सामाजिक स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत है ।

अमृता थर्ड जेंडर वर्ग पर थोपे गए सामाजिक यंत्रणा को तोड़कर खुद को तथा अपने समाज को स्वतंत्र करना चाहती है।”खुले आसमान को देखकर उसने पंख फैलाने शुरू कर दिए मैंने उसे आकाश की तरफ अपने दोनों हाथों से उड़ा दिया”। लगभग दो सौ पन्ने का यह उपन्यास अपने कलेवर में सारगर्भित है। इस उपन्यास के कथानक और पात्र बेजोड़ है। उपन्यास पढ़ते वक्त चरित्र -चित्रण से इतना घुल मिल जाता हूं कि वह बेजोड़ जान पड़ते हैं

जैसा कोई अच्छा और सच्चा मित्र हो किन्तु जब उपन्यास समापन की ओर बढ़ता है तो लगता है कि कोई मित्र कुछ देर चलते -चलते साथ पीछे छूट रहा हो । अपने समय के यथार्थवादी परिस्थितियों का चित्रण करता यह उपन्यास सारगर्भित है।

भाषा सरल और सहज है। कहीं -कही व्यंग्य का प्रयोग इस उपन्यास की सार्थकता को प्रकट करता है। सूत्र वाक्यो के प्रयोग ने ट्रांसजेंडर वर्ग की परिवारिक व्यथा और अकेलापन को व्यक्त किया है।” हमें पति मिलता है,वो भी पत्थर का बेजुबाॅं और बहरा, जो राक्षस है।” उपन्यास के संवाद इतने गतिशील है कि कब नया मोड़ आ जाता है पाठक को पता ही नहीं चलता परत दर परत विश्लेषण से संवाद रूचिकर लगते हैं।

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