जनसागर टुडे
मेरठ।
सरदार पटेल सुभारती विधि संस्थान, स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के तत्वाधान में डॉ.बी.आर.अम्बेडकर पीठ द्वारा दो दिवसीय ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन किया गया। जिसका विषय है- “भारत में न्याय संगत और समावेशी समाज का निर्माण– डॉ.बी.आर.अम्बेडकर का दृष्टिकोण” रहा। डॉ.बी.आर.अम्बेडकर पीठ के समन्वयक राजेश चन्द्रा (पूर्व न्यायमूर्ति प्रयागराज उच्च न्यायालय) व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.मनोज कुमार त्रिपाठी ने इस कार्यक्रम की आधार शिला रखी है। सुभारती विधि संस्थान के संकायाध्यक्ष प्रो.(डॉ.) वैभव गोयल भारतीय ने इस कार्यक्रम की सफलता के लिए शुभकामनाएं प्रेषित की।
डॉ.मनोज कुमार त्रिपाठी ने यूट्यूब पर ऑनलाइन हुए इस कार्यक्रम का संचालन करते हुए सभी अतिथियों का सूक्ष्म परिचय दिया तथा डॉ.बी.आर.अम्बेडकर पीठ तथा आज के कार्यक्रम व विषय पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होनें स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो.(डॉ.) वी.पी.सिंह को कार्यक्रम के शुभारम्भ व सम्बोधन के लिए आमन्त्रित किया। कुलपति महोदय ने कहा कि डॉ.अम्बेडकर एक बौद्धिक व्यक्ति थे। समाज कल्याण की दिशा में किये गये उनके प्रयास उन्हें अग्रिम पंक्ति का समाज सुधारक बनाते है। आज आयोजित यह कार्य्रकम समाज के चिन्तन पर निश्चित तौर पर प्रभाव डालेगा और हम सब वर्ण विहिन व जाति विहिन समाज के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगें। उन्होनें कार्यक्रम की सफलता के लिए अपनी शुभकामनाएं भी दी। डॉ.बी.आर.अम्बेडकर पीठ के समन्वयक राजेश चन्द्रा (पूर्व न्यायमूर्ति प्रयागराज उच्च न्यायालय) ने अपने सम्बोधन मे कहा कि संविधान निर्माण में बाबा साहब का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे एक महान शिक्षक, चिन्तक, दार्शनिक, लेखक व समाज सुधारक थे। महिलाओं और दलित चेतना के लिए उनके किये गये प्रयास हमेशा याद किये जायेगें। राजनैतिक विज्ञान विभाग, राजकीय विज्ञान व मानविकी संस्था विधर्व, अमरावती के प्रो.(डॉ.) कुंवरलाल वासनिक ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि वर्ण व्यवस्था में पिछडी जातियों विशेष कर दलित समाज के उत्पीड़न व उनके प्रति अन्याय की भावना ने अम्बेडकर साहब की चेतना को अत्यधिक पीड़ा पहुँचायी थी। यहाँ तक कि इस पीड़ा से उनका बचपन भी गुजरा था। इस अन्याय के खिलाफ उन्होनें अपना संघर्ष राजनैतिक, सामाजिक और सैंवाधानिक तरीके से लगातार जारी रखा। गांधीवाद व शांति अध्ययन केन्द्र, महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतीहारी के असिस्टेंट प्रो.अम्बीकेश कुमार त्रिपाठी ने “अम्बेडकर के चिन्तन में स्वराज” विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि स्वराज का चिन्तन वेदों, उपनिषदों व बौद्धदर्शन में दिखाई देता है। बाबा साहब ने स्वीकार किया था कि संविधान केवल शब्दो का पुलिन्दा मात्र होगा, जबतक उसको क्रियान्वित करने वाले लोग ईमानदार नही होगें। उन्होनें कहा कि अमेरिका का संविधान सबसे छोटा होने का बावजूद सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है, जबकि भारतीय संविधान सबसे बडा लिखित संविधान है परन्तु अनेक समस्याएं भारतीय समाज में अभी भी विद्धमान है। अम्बेडकर का स्वराज का अर्थ दलित चेतना के विकास से भी जुड़ा था।तथागत बौद्धपीठ, स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के समन्वयक डॉ.भन्ते चन्द्रकीर्ति ने वेविनार को सम्बोंधित करते हुए कहा कि जातिवाद की भावना के कारण ही भारत के लोगों में राष्ट्रवाद की भावना नही पनप पायी। बाबा साहब का मानना था कि जाति व्यवस्था की रूढ़ियों को तोड़े बिना हम भारत को शक्तिशाली एवं समृद्ध राष्ट्र नही बना सकते। स्वतन्त्रता, समानता, बन्धुत्व, गरिमा, आत्मसम्मान एवं न्याय बाबा साहब के दर्शन का मुख्य लक्ष्य रहा है।
सुभारती लॉ कॉलिज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रीना बिश्नोई ने “महिला सशक्तिकरण में बाबा साहब का योगदान” विषय पर सम्बोधित करते हुए कहा कि किसी भी समाज के विकास व सफलता को वहां की महिलाओं की स्थिति को जानकर परखा जा सकता है। बाबा साहब महिला सशक्तिकरण के लिए संवेदनशील थे। महिलाओं की स्थिति में सुधार व उनके सशक्तिकरण के लिए हिन्दू कोड बिल के माध्यम से उन्होनें एक नयी मुहिम चलायी। उनका चिन्तन शिक्षा से महिलाओं के जीवन में परिवर्तन लाना भी था। प्रथम सत्र के अन्तिम चरण में डॉ. बी.आर.अम्बेडकर पीठ के रिसर्च ऑफिसर डॉ. प्रेमचन्द्र ने सभी अतिथियों का धन्यवाद प्रारित किया। दूसरे सत्र में डॉ. मनोज कुमार त्रिपाठी ने संचालन करते हुए सभी अतिथियों का सूक्ष्म परिचय व स्वागत करते हुए डॉ.बी.आर.अम्बेडकर पीठ के समन्वयक राजेश चन्द्रा (पूर्व न्यायमूर्ति) को सम्बोधन के लिए आमन्त्रित किया। राजेश चन्द्रा जी ने दूसरे सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि समाज से छूआ-छूत का अभिशाप मिटाने, दलित चेतना जगाने व महिलाओं की उन्नति व सम्मान के लिए डॉ. अम्बेडकर ने अपनी मुहिम चलायी। उन्होनें मूक नायक (1920) तथा बहिष्कृत भारत (1927) नाम से समाचार पत्र निकाले और समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य किया। सुभारती पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के डीन प्रो.(डॉ.) नीरज कर्ण सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि जातिवाद के कारण ही भारत में राष्ट्रवाद की भावना विकसित न होने के कारण ही देश ने गुलामी का दंश झेला। राष्ट्र के सभी व्यक्तियों में समानता स्थापित कर न्याय संगत व्यवस्था बनाना डॉ. अम्बेडकर का विजन था। वे एक ऐसी न्यायसंगत व्यवस्था चाहते थे जिसमें सभी व्यक्तियों को आत्मसम्मान से जीने का अधिकार हो। प्रो.(डॉ.) एम.एम.सेमवाल, विभागध्यत्र, राजनीतिक विज्ञान विभाग, एच.एन.बी. गढ़वाल विश्वविद्यालय, ने वेविनार को सम्बोधित करते हुए कहा कि संविधान में अम्बेडकर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। उन्होनें सामाजिक समरस्ता को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। संविधान के अनुच्छेद 17 में उन्होनें मुख्यत: अस्पृश्यता के मुद्दे को रखा। बाबा साहब दलितों, महिलाओं, और मजदूरो आदि के हितों के लिए सामाजिक क्रान्ति के साथ-साथ राजनैतिक क्रान्ति की आवश्यकता पर भी जोर देते थे।अर्थशास्त्र विभाग, चौ.चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के विभागाध्यक्ष प्रो. दिनेश कुमार ने कहा कि आज यह चिन्तन का विषय है कि आजादी के 75 वर्षो में समाज में वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था अभी भी व्याप्त है। बाबा साहेब के समता मूलक समाज की स्थापना का सपना इसमें पिछड़ गया है। डॉ.अम्बेडकर अन्य समाज सुधारकों से अलग थे। उन्होनें बदलती परिस्थितियों के अनुरूप समता मूलक समाज की स्थापना के लिए जीवन पर्यन्त कार्य किया।राजकीय पी.जी.कॉलिज, कटनी, मध्यप्रदेश के राजनीतिक विज्ञान विभाग की विभागाध्यक्षा प्रो.(डॉ.) चित्रा प्रभात ने अपने सम्बोधन मे कहा कि डॉ.अम्बेडकर केवल दलितों के मसीहा ही नही थे, वरन उन्होनें भारत के सभी वर्गों के उत्थान के लिए कार्य किया। अपनी दूरदर्शिता से उन्होनें संविधान में अनेक ऐसे प्रावधान शामिल कराये जिनकी आवश्यकता समता मूलक समाज और लोकतांत्रिक देश को होती है।
सरदार पटेल सुभारती विधि संस्थान के संकायाध्यक्ष प्रो.(डॉ.) वैभव गोयल भारतीय ने अपने सम्बोधन में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति विधि के समक्ष समान रूप से संरक्षित है। उन्होनें समाज के बदलाव के लिए शिक्षा पर बल दिया जबकि पहले शिक्षा पर वर्ग विशेष के लोगों का अधिकार था। भारत में वर्ण व्यवस्था विभेदकारी व्यवस्था की जननी है। समता मूलक की स्थापना के लिए विभेदकारी सारी व्यवस्थाओं का आज दमन करने की आवश्यकता है। आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे है तब हमें यह भी देखना होगा कि इन 75 वर्षो में हमने क्या खोया है और क्या पाया है। कोविड-19 में तो शिक्षा का परिदृश्य और भी स्पष्ट हो गया कि आज भी गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए मूलभूत सुविधाओं की कमी है। उन्होनें कहा कि देश के प्रत्येक नागरिक को देश के कानूनों का ज्ञान होना चाहिए ताकि वे अपने मूलभूत अधिकारों और कर्तव्यों का प्रयोग कर एक अच्छे नागरिक कहलाये।
इंस्टीटयूट ऑफ लॉ, निरमा विश्वविद्यालय, अहमदाबाद के असिस्टेंट प्रो.(डॉ.) विकास कुमार उपाध्याय ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर द्वारा बनाये गये संविधान में जो प्रावधान निहित किये गये है उनके माध्यम से हम सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्राप्त कर सकते है। भारतीय संविधान में यह व्यवस्था है कि यदि व्यक्तियों के अधिकारों का टकराव किसी व्यक्ति या संस्था से है तब वह अपने लिए न्याय की मांग कर सकता है। भारतीय संविधान किसी भी व्यक्ति को उसकी जाति, विश्वास व धर्म के आधार पर अलग नही करता है। अर्थात् भारतीय संविधान समतामूलक समाज की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध है।
कार्यक्रम के अगले चरण में इस ऑनलाइन प्रोग्राम में शामिल प्रतिभागियों ने अतिथि शिक्षकों से अनेक प्रश्न पूछ कर अपनी जिज्ञासा को शान्त किया।
दो-दिवसीय इस ऑनलाइन कार्यकम के अन्तिम चरण में डॉ. बी.आर.अम्बेडकर पीठ के रिसर्च ऑफिसर डॉ. प्रेमचन्द्र ने स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति महोदय, मुख्य कार्यकारी अधिकारी महोदया एवं कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित कर आभार व्यक्त किया। इस कार्यक्रम में अनेक विश्वविद्यालयों के शिक्षक, शोधकर्ता व छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।