जन सागर टुडे/ आलोक यात्री
गाजियाबाद। साहिर लुधियानवी ने अपने एक मशहूर गीत के बोल कुछ इस तरह लिखे थे “जिन्हें नाज़ है हिंद पर वह कहां हैं… जरा मुल्क के रहबरों को बुलाओ, यह कूचे, यह गलियां, यह मंजर दिखाओ, जिन्हें नाज़ है हिंद पर उनको लाओ, जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं… कहां हैं…।” कवि नगर स्थित एक इमारत के ऊपर टंगे राष्ट्रीय ध्वज की दुर्दशा देखकर सबसे पहले प्यासा फिल्म के गीत की यही पंक्तियां जेहन में कुलबुलाती हैं। कवि नगर एफ ब्लॉक के एक अपार्टमेंट की छत पर जर्जर अवस्था में टंगा तिरंगा बिल्डिंग वालों की ही नहीं अड़ोस-पड़ोस के तमाम नागरिकों की संवेदनशीलता की गवाही दे रहा है।
क्या हम देश के सम्मान चिह्न की अस्मिता के साथ इस तरह का खिलवाड़ कर सकते हैं? राष्ट्र ध्वज की अस्मिता के साथ किसी भी सूरत में खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। यह निसंदेह दंडनीय अपराध है। लेकिन कवि नगर एफ ब्लॉक स्थित 42 नंबर के भूखंड पर खड़े सागर रत्ना अपार्टमेंट में राष्ट्रीय अस्मिता की अस्मत को सरेआम तार-तार किया जा रहा है। निसंदेह यह अपार्टमेंट भी महानगर के अन्य अपार्टमेंट की तरह नियमों को ताक पर रखकर अवैध रूप से बनाया गया होगा। लिहाजा राष्ट्र ध्वज की दुर्दशा को देखकर यही कहा जा सकता है कि “एक तो अवैध निर्माण ऊपर से ध्वज का अपमान।”
आपकी जानकारी के लिए बताते चलें कि सागर रत्ना बिल्डिंग की छत पर तिरंगा आधा झुका हुआ है। सामान्यतः राष्ट्रध्वज राष्ट्रीय शोक के समय ही आधा झुकाया जाता है। देश में राष्ट्रीय शोक की ऐसी कौन सी घड़ी आ गई कि तिरंगे को आधा झुकाना पड़ा? यदि राष्ट्रीय शोक की घड़ी में तिरंगा झुकाया गया था तो बाद में उसे सम्मान यथास्थिति में क्यों नहीं लाया गया? हमारी अदालतों ने नागरिकों को घर, दफ्तर, प्रतिष्ठान में राष्ट्रध्वज सजाने का पूरा अधिकार तो प्रदान कर दिया, लेकिन इसके लिए प्रोटोकॉल का पालन आवश्यक है।
इंडियन पैनल कोड को 26 जनवरी 2002 को संशोधित किया गया था। जिसके बाद कोई भी नागरिक किसी भी दिन अपने घर, कार्यालय या कारखाने पर तिरंगा फहराया सकता है। ध्वजारोहण के नियमों के तहत झंडे को कभी झुकाया नहीं जा सकता। सरकारी आदेश के बाद ही सरकारी इमारतों पर झंडे को आधा फहराया जा सकता है। फ्लैग कोड ऑफ इंडिया के तहत ध्वज को गलत तरीके से फहराने पर तीन वर्ष कारावास का प्रावधान है।
एक दो पड़ोसियों से जब इस बाबत जानकारी चाही गई तो उनका कहना था कि जनाब सागर रत्ना बनाने वालों को कानून का डर होता तो वह लोग इमारत का निर्माण अवैध रूप से क्यों करते? जब इमारत बनाने वालों को ही कानून का डर नहीं है तो इमारत के बाशिंदे भी भला कानून की परवाह क्यों करेंगे? यहां सवाल यह उठता है कि सरेआम हो रहे तिरंगे के इस अपमान का दोषी कौन है? और प्रशासन उसके खिलाफ कारवाई कब करेगा?
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