Sunday, November 24, 2024
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संयुक्त किसान मोर्चा को लेने होंगे राजनीतिक फैसले ! प्रबुद्ध लोग आगे नही आए तो बिहार जैसा हाल होगा

नई दिल्ली  :  आठ महीने से ज्यादा समय से किसान तीन खेती कानूनो को निरस्त कराने, एम एस पी की लिखित गारंटी और एम आर पी यानि आवश्यक वस्तु अधिनियम की बहाली की मांग को लेकर दिल्ली के बॉर्डर पर पड़े हैं। किसान आन्दोलन और जासूसी कांड़ को लेकर दिल्ली की संसद की कार्यवाही ठप्प है। सरकार के पास कोई जवाब नही है और वह पूंजीपति घरानो की रखैल होने के आरोपो से घिरी है। इस बीच भाजपा सत्ता हथियाने के मूल चरित्र पर काम कर रही है। दिलचस्प ये है कि सरकार की हठ धर्मिता खेती कानूनो को वापिस ना लेने की है और उधर किसान ना केवल खेती,फसल,नस्ल,उपभोक्ता,आम नागरिक और देश बचाने की लडाई लड़ रहे हैं बल्कि देश की राजनीती को मुद्दो पर लाने की जंग लड़ रहे है। इस बीच विपक्ष कन्फ्यूज नजर आता है। ऐसे मे संयुक्त किसान मोर्चा की भूमिका बड़ी हो जाती है। ये मानना पडेगा कि मोदी और योगी सरकार को बेनकाब करने मे विपक्ष फेल रहा और किसान आन्दोलन ने ही विपक्ष की भूमिका निभाई। सब जानते हैं जब तीन खेती कानूनो को लेकर गाजीपुर के बॉर्डर पर आधी रात को भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत के खिलाफ भाजपा गुंडई कर रही थी तो वहां कोई नही था। टिकैत के आंसू निकल गए और उनकी जान तक खतरे मे थी। किसानो ने आधी रात को ये मंजर देखा तो उन्होने आधी रात को ही ट्रैक्टर जोड़ दिये। भारतीय किसान यूनियन के महासचिव युद्धवीर सिंह पूरी रात फ़ोन काल पर लगे रहे। इस घटना का असर हुआ और किसानो का यू पी बॉर्डर पर तो जमावड़ा लगा ही,गाव गाव किसान मजदूर का खून खौल गया। अगले दिन रालोद सहित सभी दलो के नेता गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे। अब सबकी समझ मे आ गया था कि मोदी सरकार अंबानी अडाणी के दवाब में है और कानुन वापिस नही लेगी। इस बीच बिहार बंगाल के चुनाव हुए।बिहार चुनाव में लालू पुत्र तेजस्वी ओवर कॉन्फ़िडेन्स में सत्ता मे आते आते आउट हो गए।बंगाल चुनाव में ममता ने वो गलती नही की, संयुक्त मोर्चा ने भी देख,समझ और परख लिया और ममता बनर्जी के पक्ष मे माहौल बनाया,नतीजतन तमाम कोशिशो और कूट नीतियों के बावजूद भाजपा को मुंह की खानी पड़ी। अब उप्र सहित पांच राज्यों के चुनाव हैं। यदि इन पांच राज्यों में भाजपा को नही रोका गया तो कृषि कानुन, उपभोक्ता बिल,जासूसी सहित देश बर्बादी की तमाम नीतियों को खत्म कराना बेहद मुश्किल है। संयुक्त किसान मोर्चा को इसमे अहम रणनीति बनानी होगी। खासकर उप्र मे सबको एक्जुट करके भाजपा का विकल्प तैयार करना होगा। सब जानते हैं कि राकेश टिकैट सहित सभी संयुक्त किसान नेताओ ने ही आठ महीने सडक पर लेट कर ये माहौल तैयार किया है। उन्हे चाहिये कि भीम आर्मी,आजाद समाज पार्टी चीफ़ चन्द्रशेखर आजाद और आम आदमी के केजरीवाल को साथ लेकर सपा रालोद के साथ उत्तर प्रदेश में बड़ा गठबंधन तैयार करेँ। ताकि बिहार विधान सभा के चुनाव की पुनरावर्ति ना हो। ममता बनर्जी की सक्रियता का भी उपयोग किया जाये। अन्य राज्यों से ज्यादा प्रभाव उप्र के चुनाव नतीजो से पडने वाला है लेकिन अखिलेश यादव और जयंत चौधरी मैदान मे उतरने के बजाय परिस्थितियो का लाभ लेने की योजना पर निर्भर हैं। ऐसे में संयुक्त किसान मोर्चा और भाकियू को विशेष रणनीति बनानी होगी। चन्द्रशेखर इस रणनीति मे खासे सहयोगी हो सकते हैं।(लेखक भीम आर्मी,आजाद समाज पार्टी के प्रवक्ता हैं)

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