जनसागर टुडे संवाददाता
गाजियाबाद। बीजेपी के पार्षद हिमांशु लव ने एक बयान के माध्यम से कहाँ कि हिन्दू सनातन धर्म में पार्थिव शरीर को सूर्यास्त से पूर्व दाह संस्कार करने का नियम है। सनातन धर्म में साधु को समाधि और सामान्यजनों का दाह संस्कार किया जाता है। इसके पीछे कई कारण हैं। साधु को समाधि इसलिए दी जाती है क्योंकि ध्यान और साधना से उसका शरीर एक विशेष उर्जा और ओरा लिए हुए होता है इसलिए उसकी शारीरिक ऊर्जा को प्राकृतिक रूप से विसरित होने दिया जाता है जबकि आम व्यक्ति को इसलिए दाह किया जाता है क्योंकि यदि उसकी अपने शरीर के प्रति आसक्ति बची हो तो वह छूट जाए और दूसरा यह कि दाह संस्कार करने से यदि किसी भी प्रकार का रोग या संक्रमण हो तो वह नष्ट हो जाए। बाद में बची हुई राख या हड्?डी को किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।
उन्होंने कहाँ कि रीति और नियम जरूरी : गरुड़ पुराण के अनुसार, उक्त सभी कार्यों को करने की विशेष रीति और नियम होते हैं। रीति और नियम से किए गए कार्य से ही आत्मा को शांति मिलती है और अगले जन्म अर्थात नए शरीर में उसके प्रवेश के द्वार खुलते हैं या वह स्वर्ग में चला जाता है। हिन्दुओं में साधु-संतों और बच्चों को दफनाया जाता है जबकि सामान्य व्यक्ति का दाह संस्कार किया जाता है। उदाहरण के लिए गोसाईं, नाथ और बैरागी संत समाज के लोग अपने मृतकों को आज भी समाधि देते हैं। दोनों ही तरीके यदि वैदिक रीति और सभ्यता से किए जाएं तो उचित हैं। उन्होंने कहाँ कि अंतिम संस्कार में शामिल होना जरूरी : अंतिम संस्कार में शामिल होना पुण्य कर्म है। जिस घर में किसी का देहांत हुआ है, उस घर से 100 गज दूर तक के घरों के लोगों को अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहिए।
अंतिम संस्?कार में शामिल होकर प्रत्येक सक्षम व्यक्ति को कंधा देना भी जरूरी बताया गया है। उन्होंने कहाँ कि पार्थिव शरीर की परिक्रमा का नियम : श्मशान ले जाने से पूर्व घर पर कुटुंब के लोग मृत व्यक्ति के पार्थिव शरीर की परिक्रमा करते हैं। बाद में दाह संस्कार के समय संस्कार करने वाला व्यक्ति छेद वाले घड़े में जल लेकर चिता पर रखे पार्थिव शरीर की परिक्रमा करता है। जिसके अंत में पीछे की ओर घड़े को गिराकर फोड़ दिया जाता है।
ऐसा मृत व्यक्ति के शरीर से मोहभंग करने के लिए किया जाता है। हालांकि इस क्रिया को सभी तत्वों को शामिल करने के लिए ऐसा किया जाता है और इसके पीछे और भी कारण हैं। दरअसल, इसका एक अर्थ यह भी है कि हमारा जीवन उस छेद रूपी घड़े के समान है, जिसमें आयु रूपी पानी हर पल गिरते हुए कम हो रहा है और जिसके अंत में सबकुछ छोड़कर जीवात्मा के परमात्मा में लीन होने का समय आ जाता है।