जनसागर टुडे संवाददाता
महात्मा आनंद स्वामी आर्य समाज के प्रचार हेतु एक नगर में पहुंचे तो उनके रहने की व्यवस्था एक धर्मशाला में कर दी गयी उनकी सेवा में नियुक्त कार्यकर्ता बहुत ही गुस्सा करने वाला था एक दिन एक सेवा करने वाले व्यक्ति के हाथ से गिलास गिर गया तो उस कार्यकर्ता ने उसकी बुरी तरह पिटाई कर दी स्वामी जी ने उसकी रक्षा की तथा उसके घावों पर दवाएं लगायी शाम को आर्य समाज के प्रधान जब स्वामी जी से मिलने पहुंचे तभी वह कार्यकर्ता भी स्वामी जी का भोजन लेकर आ गया स्वामी जी ने कहा कि में कसाई के हाथों से भोजन स्वीकार नहीं करता हूँ आर्य समाज के प्रधान ने स्वामी जी से कहा कि यह तो हवन यज्ञ करने वाला आर्यसमाजी है,स्वामी जी ने सारी घटना प्रधान को बताने के उपरांत कहा कि हिंसा का अर्थ केवल यह नहीं है कि हत्या की जाये जो व्यर्थ में गाली दे मारपीट करें अपना आपा खो दे वह कसाई नहीं है तो क्या है।उस कार्यकर्ता ने उसी दिन क्रोध ना करने का प्रण लिया।