Sunday, November 24, 2024
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होमआलेखमेरी कलम से

मेरी कलम से [ कविता]

“ये तो है यादों का पिटारा कल भी था आज भी है हमारा”
जनसागर टुडे संवाददाता

वो गली मोहल्लो की बातें खुली छत पर वो अंधियारी राते मस्ती भरी वो  ठंडी बरसाते त्योहारों की अनमोल सौगाते मिलजुल हम सभी मनाते खुशियो से चेहरे खिल जाते ये  तो है यादों का पिटारा कल भी था आज भी हैं हमारा किसी बहन की शादी मे पूरा मोहल्ला जुट जाता था बिना बोले भी हर कोई काम मे आगे आ जाता था विदाई पर भी इतने आँसू इतने भाइयों का वो रिश्ता कोई समझ नही पाता था ये  तो है यादों का पिटारा कल भी था आज भी  हैं हमारा जब भी मोहल्ले मे कोई अधिक बीमार पड़ जाता था पूरा मोहल्ला अपने हिस्से की तीमारदारी मे लग जाता था कैसा किस से किसका झगड़ा मुसीबत मे सब भूल जाता था जब भी कोई मातम छा जाता हर व्यक्ति अपने भावों के अश्रु नीर बहाता था ये  तो हैं यादों का पिटारा कल भी था आज भी हैं हमारा आज एकाकी से हो गया जीवन औपचारिकताओं का लगा अम्बार बड़ी बड़ी  हो गयी अट्टालिकाएं और छोटा हो गया अपनत्व विचार तीज त्यौहार भी न सुहाने लगते मुस्कुराहट भरा रूखा व्यवहार चलो फिर से ले इसे सवांर बिना बात ही मिल जाना घंटो आपस मे बतियाना सारी सुख दुख की बातें मित्रो से सब कह जाना अनायास ही गले लिपटकर अपने आँसू  जी जाना ये  तो हैं यादों का पिटारा कल भी था आज भी  हैं हमारा पुरानी ज़िन्दगी के पिटारों मे से कुछ खेल खिलोने फिर ले आओ फिर से बनाओ मित्रो की टोली करे फिर वही हँसी ठिठोली आओ मिलकर भर ले फिर से एक दूसरे की सुख दुख की झोली मेरे मन मे रंगे ,तेरे रंग की रंगोली और अपनी जिव्हा से बोले फिर से वही दोस्तो की बोली एकांकी मन से करे किनारा फिर सयुंक्त हो जीवन सारा ये तो है यादों का पिटारा कल भी था आज भी है हमारा
संजय कुशवाहा

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