जनसागर टुडे संवाददाता
साहिबाबाद : जब भी कोई विपदा आती है तब मनुष्य को ईश्वर याद आता है एवम जब कोई महामारी आती है तब प्रकृति याद आती है । आज यज्ञ हवन की बाद आम जन मानस कर रहे हैं इतना ही नही यज्ञ की प्राकृतिक महत्वता बताने के लिए लोग दुनिया भर की वैज्ञानिक संस्थाओं की रिसर्च रिपोर्ट सोशल साइट्स पर डालकर लोगो को यज्ञ आदि के लिए प्रेरित कर रहे हैं पर क्या प्रकर्ति की महत्वता लोग वास्तव में समझते है या किसी महामारी/आपदा के आने पर ही समझ पाते है ।
जैसे वर्षा का न होना,भूकंप आना, बाढ़ आना,बीमारी का फैलना क्योंकि जब भी ऐसा कुछ होता है तब मनुष्य को प्रकर्ति की याद आती है अन्यथा जिस ईश्वर को आज हम याद कर रहे हैं उनके मंदिरों में भी जाने के लिए हमारे पास समय नही होता भगवान की आरती भी इलेक्ट्रॉनिक मशीनों से करवानी पड़ती है ।
जिस प्रकार जब कोई व्यक्ति किसी के अंतिम संस्कार में जाता है तब अक्सर व्यक्ति ये कहते हुए नजर आते है कि कुछ नही रखा इस दुनियादारी में हमे बस अच्छे कर्म करने चाहिए पर शमशान भूमी से बहार निकलते ही सब भूल जाते हैं उसी प्रकार इस कोरोना महामारी में तो हमे प्राकृतिक महत्व समझ आ रहा है पर जैसे ही हालात सामान्य होने लगेंगे हम सब वापस अपनी प्राकृतिक जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लेंगे।
तो प्रश्न ये उठता है कि क्या हम इस प्रकृति के संरक्षण को अपने जीवन के बाकी मूलभूत उद्देश्यों का हिस्सा नही बना सकते । क्या हम ये विचार नही कर सकते कि जल की वेस्टेज न हो ,वृक्षो की अधिकता हो , माह में कम से कम एक बार शुद्ध सामग्री से हवन अवश्य हो जिससे वायुमंडल के विषाणु मरते रहे ये विषाणु भी वही होते है जिनका जन्म भी हमारी जीवनशैली से ही होता है ।
हवन करने के लिए किसी पंडित जी का ही होना आवश्यक नही है । ये कार्य हर व्यक्ति अपने घर पर ,गली में, मोहल्लों में मिलकर साधारण तरीके से भी कर सकते हैं । यदि हम आज भी केवल इसी विचारधारा पर चलते रहे कि इस प्रकर्ति के संसाधनों को केवल हमारे उपयोग के लिए बनाया गया है तो ध्यान रखना जिस संसाधन का संरक्षण नही किया जाता वो किसी के भी उपयोग के लिए शेष नही बचता। मृत्यु के भय से नही अपितु ये सब कार्य क्यों करने चाहिए काश हम सब समझ पाएं एवम याद रख पाएं।