जनसागर टुडे : धीरेन्द्र अवाना
नोएडा। “मन के हारे हार है और मन के जीते जीत।” यह कहावत हम बचपन से सुनते आ रहे हैं पर कोरोना काल में हम इसपर ही अमल करना भूल गये हैं, जो बहुत जरूरी है। मन में मजबूत विश्वास रखिये, हमें कोरोना को हर हाल में हराना है और भगाना है। यदि हम हर समय अपने मन में हार और नकारात्मक विचारों को जगह देंगे तो परिणाम भी वैसा ही होगा।
इस समय हमें सबसे ज़्यादा ज़रूरत है अपने आसपास एक चिंता रहित वातावरण बनाने की और मानसिक तौर पर खुश एवं स्वस्थ रहने की।यह कहना है साइकोलॉजिस्ट सोशल वर्कर पारुल पुंढीर का। वह कहती हैं
हम अपनी जिन्दगी की सभी घटनाओं पर नियंत्रण नहीं रख सकते, पर उनसे निपटने के लिये सकारात्मक सोच के साथ सही तरीका तो अपना ही सकते हैं। कई लोग अपनी पहली असफलता से इतना परेशान हो जाते हैं कि अपने लक्ष्य को ही छोड़ देते हैं। कभी-कभी तो अवसाद में चले जाते हैं। यह स्थिति बहुत खतरानाक होती है।
पारुल पुंडीर कहती हैं कि सकारात्मक विचार बहुत जरूरी हैं, खासतौर पर कोरोना काल में। उन्होंने चार्ल्स डार्विन के एक लोकप्रिय सूत्र – “योग्यतम का अस्तित्व” (सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट) का जिक्र करते हुए कहा कि किसे पता था कि जिस नियम को हम किताबों में पढ़ते आए हैं,
प्रकृति हमें उसका साक्षात अनुभव करा देगी। वर्तमान में कुछ ऐसा है जिसका सामना जीवन में शायद एकबार ही हो, ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो कोई हॉलीवुड मूवी चल रही हो, जिसमें पता नहीं कब और कहाँ से जोंम्बी जैसा वायरस आएगा और हमें अपने आगोश में ले लेगा।
उन्होंने कहा कि काढ़ा, गिलोय, भाप, विटामिन-सी, जिंक – अपने शरीर की प्रतिरोधक-क्षमता बढ़ाने के लिए हम क्या नहीं कर रहे परन्तु क्या हम अपनी भावनात्मक या मानसिक प्रतिरोध-शक्ति बढ़ाने के लिए भी कुछ कर रहे हैं? शारीरिक स्वास्थ्य अगर हवा की तरह है तो मानसिक स्वास्थ्य पानी की तरह है, दोनों के बिना जीवित रहना नामुमकिन है।
इतिहास गवाह है कि कितनी ही जंग शारीरिक शक्ति से नहीं बल्कि मानसिक बल से जीती गईं हैं। पारुल कहती हैं मानसिक क्षमता बढ़ाने के लिए कोई तय फार्मूला नहीं है। अगर घड़ी आपकी है तो आपको ही पता होगा कि आपकी घड़ी में कितना बजा है।
जैसे हर किसी के उंगलियों के निशान अलग होते हैं वैसे ही हर किसी का नजरिया भी अलग होता है। यह जरूरी नहीं कि एक ही बात जितना किसी दूसरे पर असर करती हो उतना ही आप पर भी असर करे।
क्योंकि अपने बारे में सबसे अच्छी तरह आप जानते हैं, इसलिए अपना मूल्यांकन भी आप खुद ही करें। जो बातें आपको दुखी करती हैं या जिन लोगों से बात करके आपको नकारात्मकता महसूस होता है उनसे दूर रहें, वह करें जो आपको अच्छा लगता है।
कुछ बातों का अवश्य ध्यान रखें:
• सृजनात्मक और विनाशकारी भावों में फर्क करना सीखें।
• अच्छा बोलें और अच्छा सोचें। हम वही आकर्षित करते हैं जो हम सोचते और बोलते हैं।
• सिर्फ वही नियंत्रित करने की कोशिश करें जो आपके हाथ में है।
• दिन में एक बार शांतिपूर्वक ध्यान अथवा प्रार्थना अवश्य करें। आपके पास जो है उसका मान करें।
• जरूरत से ज्यादा सोचना राई को पहाड़ बना देता है, इसलिए किसी भी मुद्दे पर हद से ज्यादा सोचने से बचें।
• मन में कोई उलझन न रखें, बात करें। अगर लगता है कि आपकी समझ आपको सहायता नहीं कर पा रही तो तुरंत किसी दोस्त या सलाहकार से बात करें और उसकी सलाह भी सुनें।