जनसागर टुडे संवाददाता
जुबैद जो एक सूफी संत थे एक बार कहीं जा रहें थे रात्रि में गांव में उन्होंने भिक्षा चाही तो गांव वालों ने यह कहकर दुत्कार दिया की अच्छे भले हो कुछ करते क्यों नहीं अगले दिन वह फिर आगे चले पर दूसरे गाँव में भी कुछ नहीं मिला तीसरे दिन रहने को भी जगह नहीं थी जंगल में रात गुजारनी पड़ी अगले दिन जब वह इबादत करने के बाद खुदा का शुक्रिया कर रहे थे तो उनके शिष्य को अच्छा नहीं लगा वह बोल पड़ा कि किस बात का शुक्रिया तीन दिन से खाने को नहीं है जुबैद ने कहा शुक्रिया क्यों नहीं चालीस साल से तो वह खुदा ईश्वर भगवान दे ही रहा था तीन दिन में ही विचलित हो गये उसके द्वारा दिए जा रहे चालीस साल याद नहीं है खुदा के प्रति उनकी निष्ठा को देख कर सभी दंग रह गये। यह आज की स्थिति पर भी लागू होती है क्योकि अब तक तो सब ठीक चल ही रहा था न यह समय विचलित होने का नही है सब देश हित में शामिल होकर कार्य करने का है।
मान सिंह यादव