जनसागर टुडे संवाददाता
काशी के एक संत गंगा किनारे तपस्या किया करते थे एक बार वह उपदेश देने कही जा रहे थे तभी उन्हें एक व्यक्ति मिला तथा कहने लगा कि महात्मा जी आप संत हैं प्रवचन करते हैं फिर भी संसार में अराजकता है कोई भी धर्म के रास्ते पर चलना ही नहीं चाहता है क्या फायदा ऐसे धर्म का तथा प्रवचन का।संत ने पूछा कि तुम क्या करते हो वह व्यक्ति बोला कि साबुन बनाने का कारखाना है तभी वहाँ गंदे कपड़ों में एक व्यक्ति आया संत ने फैक्टरी वाले सज्जन से कहा कि तुम्हारी साबुन की फैक्टरी के बाद भी इस व्यक्ति के कपड़े गंदे है।फैक्टरी वाले ने कहा कि महाराज में साबुन बनाता हूँ कपड़े तो इसे ही साफ करने होगें संत बोले यही बात धर्म पर भी लागू होती है हम बता सकते हैं संस्कार दे सकते हैं पर करना तो स्वयं ही होगा। यही बात आज के समय में कोरोना पर भी लागू होती है हम बता सकते हैं, समझा सकते हैं पर करना तो सभी को खुद ही होगा |