जनसागर टुडे संवाददाता
आज संपूर्ण भारतवर्ष में कोरोना की दूसरी लहर तांडव मचा रही है l कोरोना संकटकाल में कई परिवारो के घरों में मातम छाया हुआ है। किसी ने अपना लाडला खोया है तो किसी ने पित्रों की छाँव खो दी है। कही तो परिवार के परिवार ही खत्म हो गये हैं । चारों तरफ मरघट का सन्नाटा कोरोना की भयावहता को दर्शा रहा है चारों तरफ मची चीख पुकार व हाहाकार के बीच देश में ना तो सरकारें नजर आ रही है और ना ही लोकतंत्र का मजबूत आधार कहे जाने वाला विपक्ष ही अपनी भूमिका निभाते नजर आ रहा है। इन हालात में आमजन गुहार लगाए भी तो कहां लगाए। अब कोरोना संक्रमित का बढ़ता आंकड़ा व उससे होने वाली मौतें डराने लगी है। ऐसे में प्रश्न उठना लाजमी है कि आखिर कोरोना संकटकाल के दौरान सरकार क्या कर रही है?
इतना ही नहीं विपक्ष की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग रहे है कि आखिर कोरोना संकटकाल में विपक्ष मित्र विपक्ष की भूमिका में ही क्यों नजर आ रहा है? देश व राज्यों के बङे विपक्षी दल व उसके नेता जो कल तक राज्य की जनता के हितैषी होने का दम भरते थे आज सिरे से गायब है । करुण रुदन से भरे इस माहौल में आज उन्हें क्यों नहीं जनता का दुख दर्द सुनाई देता है। क्यों नहीं विपक्ष अपनी दमदार भूमिका निभाते नजर आता है सवाल कई हैं जिनका उत्तर जनता जानना चाहती है ।
हालिया पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव उसके लिए सबक है। कुल मिलाकर कोरोना काल के इस संकट में राजनैतिक दलो ने आम जनमानस को उसके हाल पर छोड़ दिया। यदि आज गरीब व्यक्ति कोरोना से बच भी जाय पर कही ना कहीं भूख उसे जीने नहीं देगी। रोजमर्रा की जिन्दगी में रोज कमाकर खाने वालो का हाल बेहाल है। वे अगर घर से काम पर ना जाये तो परिवार का भूख से मरने का डर। काम से घर आए तो परिवार को कोरोना का डर। गलती से भी काम पर गए परिवार के इस व्यक्ति को कोरोना हो गया तो पूरा घर परिवार ही तबाह।
इस समय तो कोरोना कब कहाँ से आपके शरीर में प्रवेश कर जाएगा कोई बयां नहीं कर सकता। ऐसे में यदि परिवार एक सदस्य की कमाई पर टिका हो और परिवार का सदस्य घर पर ही ठहर जाए तो परिवार कोरोना से मरे या नहीं पर भूख से परिवार नष्ट होने की सम्भावनाएं ज्यादा है। और काम पर जाकर कोरोना की चपेट में आया तो भी मजदूर का परिवार तबाह हो ही जाना है। इधर खाई उधर कुआं अब आम आदमी जाए तो जाए कहाँ। ना ही सरकार कुछ कर रही है
और ना ही विपक्षी दल कुछ कर पा रहे है। हर रोज यहा हजारों की संख्या में मौतें जरूर हो रही हैं । अगर ऐसा ही चलता रहा तो कहीं आम आदमी हिंसक बनकर तबाही का रूख ना अपना ले। वास्तविकता में यह समय है व्यवस्थाओ को दूरस्थ करने का, समय है जनसेवा की भावना का, समय है पक्ष-विपक्ष की भूमिका को छोड़कर जनसेवा का। मेरा विनम्र निवेदन उन सभी दलों से है कि इस विषम परिस्थिति में गरीब व असहाय लोगों की मदद कर उन्हें हौंसला प्रदान करें ।