जनसागर टुडे संवाददाता
गाजियाबाद : कोरोना का कहर मौत बनकर इंसानी जिंदगियों पर टूट रहा है। पूरे देश में सांस बचाने की जबरदस्त जंग चल रही है लेकिन सरकारी इंतजामात फेल हो गए हैं। लेखक खुद अपने कई करीबियों को देखते ही देखते काल के गाल में समाते देख सकते में है। अस्पतालो के इन्तजाम,ओक्सिजन की व्यवस्था, एम्बुलेंस से लेकर वैक्सीन और रेडिसिमर इन्जेकसन की कालाबाजारी से लोग हल्कान हैं।
मैने खुद देखा कि मेरठ से गाजियाबाद तक बमुश्किल 2000 रुपये चार्ज पर जाने वाली एम्बुलेंस के 7500 रुपये वसुले गए। मेरठ मेडिकल में मरीजो को ठेलो पर डाल डाल कर ले जाया गया,वार्ड में मरीज बेहाल थे और वे तड़पती हालत में हॉस्पिटल से बाहर जाने को झटपटा रहे थे। मरीजो से परिजनो की फ़ोन पर एक मिनट बात कराने के 500 रुपये तक वसुले गए।
इन्जेक्शन और ओक्सिजन को लेकर लम्बी लाईन और काला बाजारी टी वी स्क्रीन पर खुलेआम दिखाई दे रही हैं। प्रधानमंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्रियों ने अस्पतालो का दौरा करने, स्थाई व अस्थाई हॉस्पिटल बनाने, ओक्सिजन और दवाओ की उपलब्धता और काला बाजारी रोकने को कोई कदम नही उठाया है।
नये प्रधानमंत्री आवास के निर्माण की डेड लाईन घोषित करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोग इस महामारी का खुलेआम दोषी ठहरा रहे है। चुनावी रैलियों और कुम्भ के आयोजन को ना रोकने पर लोगो में पी एम मोदी के प्रति बेहद गुस्सा है। नये प्रधानमंत्री आवास का निर्माण लोगो को चुभ रहा है। शहर और गाव की गलियों में प्रधानमंत्री के पर्सनल हवाई जहाज की खरीद और हजारो करोड़ की मुर्तिया बनवाने को लेकर आलोचनाएँ हो रही है।
\एक साल बाद भी कोविड़ महामारी को लेकर कोई तैयारी ना करना और ताली थाली बजवाने को लेकर अब मुखर आलोचना हो रही है। लोगो में ये अवधारणा बनती जा रही है कि हॉस्पिटल के बजाय घर पर इन्सान ज्यादा सुरक्षित है। यह अस्पताल ही नही व्यवस्था से भी भरोसा उठने सरीखा है।
देश में करोडो प्राईवेट चिकित्सक हैं, जिन्हे झोलाछाप डॉक्टर कह कर अपमानित किया जाता है लेकिन आज सच्चाई यह है देश के 80% मरीजो को प्राथमिक उपचार देकर यही झोलाछाप डॉक्टर रिकवर कर रहे हैं।
बडे बडे हॉस्पिटल में नर्स और वार्ड बॉय के अलावा पैरा मेडिकल के लोग ही ट्रीटमेंट उपलब्ध कराते हैं डिग्रीधारी डॉक्टर तो अपने इन्ही अधीनस्थ स्टाफ की सलाह पर महँगी फीस वसूल कर परामर्श लिख देते। सर्जरी के अलावा ज्यादातर काम अधीनस्थ स्टाफ ही करता है।
क्या ऐसे में गाव गाव, शहर और गली मोह्ल्लो में इन करोडो झोलाछाप चिकित्सको को अस्थाई अस्पताल उपलब्ध करवाकर सरकार इनको इंसानी स्वास्थ्य सेवा में नही लगा सकती थी? यदि ऐसा होता तो निश्चित तौर पर कत्ल खानो में तब्दील हो गए बडे और सरकारी अस्पतालो पर लोड कम होता और वहा भ्रष्टाचार और काला बाजारी रुकती।
इसके साथ ही जो महामारी को लेकर भय का माहौल बना है,वह भी दूर किया जा सकता था लेकिन मोदी सरकार की प्राथमिकता तो यह है ही नही।