जनसागर टुडे संवाददाता
मैं तो चिल्ला चिल्ला कर कहूंगा कि लौट चलो पुरानी जडों की ओर. अस्पताल खोलो , अस्पताल खोलो चिल्लाने वालो 100 अस्पताल न खुलवा कर मौहल्ले मौहल्ले के बंद पडे़ अखाडे़ खुलवा दो , दंड बिट्ठक पेलो फेफड़ों में हवा भरना सीखो, बच्चों को मैदान में पुराने खेल खेलने दो फिर देखो कौन बीमार पड़ता है । पुराने जमाने में डाक्टर घर पर आता था अब हम उसके क्लिनिक में लाईन लगाते गर्व समझते हैं ।
अखाडे़ जाने में शर्म आती है , फेफड़े नहीं फुलाओगे तो अस्पताल ही तो जाओगे , मोटी रकम चुकाओगे हाथ में खुची सुई लेकर शान से बताओगे एवन हास्पिटल से आया हूं 25000 दिन का चार्ज था । अरे बेवकूफ ये क्यों नही समझता शमशानग्रह का टोकन लेकर आया है ।
आज की स्थिति का सबसे बडा़ कारण है संयुक्त परिवार खत्म होना । इससे खानपान संयमित व संतुलित होता था । घर के अचार मुरब्बे होते थे ।
अब शादी होते ही घर से अलग और सैर सपाटे चालू । खाना कौन बनाये तो होटल, पिज्जा, बर्गर, छोले भटूरे, डोसा , इढली, पैकेट बंद खाना शुरू । ये पेट तो भर सकते हैंं जीभ को स्वाद दे सकते हैं पर शारीरिक ताकत नहीं दे सकते , और धीरे-धीरे बीमारी का घर खुद तैयार करते हैंं ।
अब औलाद पैदा हुई तो चुम्मा ले लेकर सबसे अच्छे पैरेंट्स बनकर दिखाना चाहेंगे , मुन्ना को कोई तकलीफ न हो पपोल पपोल कर रखेंगे , अब दो साल में प्राइवेट स्कूल में नाम लिखवा देंगे
क्योंकि पैसा है पावर है फीस भर देंगे , सरकारी स्कूल की ऐसी की तैसी, जबकि खुद सरकारी स्कूल में पढे़ थे ।बच्चा मोम डैड बोलेगा हम खुश होंगे , बच्चा अंग्रेजी पढे़गा तो रामायण , महाभारत , महाराणा प्रताप कौन थे कैसे जानेगा और बच्चा स्ट्रांग कैसे बनेगा ।
अरे याद करो वो गुल्ली-डंडा का खेल , हॉकी, ठिकडफोड़, पकड़मपकडाई, लुकाछिपाई, खो-खो जैसे न जाने कितने ही उछलकूद वाले खेल खेल कर हमारे बुजर्ग 90-100 साल तक जीते हैं जबकि आज कल के बच्चे 50 साल मुश्किल से निकालेंगे ।
अब घर में कूलर एसी चाहिए सारे खिड़की दरवाजे बंद अब शुद्ध वायु कहां से मिले ? कबूतरनुमा दड़बों जिसे फ्लैट कहते हैंं उसमें चौथी पांचवीं मंजिल पर रहेंगे जहां न सूर्य का प्रकाश आयेगा न हवा, बंद बंद रहेंगे । अब आफिस से घर 10 किलोमीटर दूर तो घर पहु़ंचने का टेंशन इसलिये बेंक से कर्ज लेकर कार खरीद ली छोटेमोटे काम के लिये मोटर सायकल ले ली ।
बस फ्लैट गाडी़ के कर्ज में बंध गये उसका टैंशन । शरीर को तंदरुस्त के लिए पैसे देकर जिम जा कर बन्द कमरे में मशीनों पर तो कूदने में अपनी शान समझते हो हेल्थ टोनिक के नाम पर महंगी दवाई (केमिकल-जहर) खाते हो , लेकिन सुबह सुबह घर के नजदीक होने पर भी पार्क में पैदल जा कर ताजी हवा के साथ घूमना और वर्जिश करना मंजूर नही ।
थोड़ा सा कुछ भी होने पर हजारों रुपये की टेस्टिंग व दवाइयां खा लेंगे लेकिन दादी-नानी के बताए नुस्खे मंजूर नही ।तो ऐसे में आदमी जी कहां रहा है रोज रोज मर ही तो रहा है ।