ये कैसा अत्याचार।
एक सोच: तिलक राज अरोड़ा
जनसागर टुडे संवाददाता
देश की लग भग आधे से ज्यादा संख्या स्वरोजगार पर आधारित है। अधिकांश लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में किसी न किसी रूप में व्यापार से जुड़े हुए हैं। पिछला वित्तीय वर्ष 2020-21 पूरा खराब हो गया. वित्तीय वर्ष 21-22 शुरू होते ही, कोरोना के प्रकोप से अधिकांश राज्यों में व्यापारिक गतिविधियां को यथास्थिति कर दिया है।
ऐसी परिस्थिति में आर्थिक और सामाजिक दोनों गतिविधियां रुक गई है। ना किसी प्रकार के जलसे हो रहे ना शादी ब्याह हो रहे। नहीं किसी और प्रकार के उत्साह, समारोह आदि हो रहे हैंं। सभी लोगों को घर रूपी गुफा में सिमट कर रहना पड़ रहा हैै। पुरानी आमदनी में से कितनी बचत रहती है। इस पर अगर गलती से भी कोई कोरोना की चपेट में आ गया, तो उसकी जो भी बचत है, उससे ज्यादा इलाज में खर्च हो रहा है।
आम व्यक्ति स्वास्थ, चिकित्सा और पढ़ाई के खर्चों में बर्बाद हो रहा है। सरकार को इस ओर ध्यान लगाना जरूरी है। व्यापारी व अन्य स्वरोजगारी है, वे कर्ज पर पैसे लेते है। उद्देश होता है कि पैसे को व्यापार या स्वरोजगार करने में इस्तेमाल करेगा। उससे ब्याज भी देगा और कर्जा भी वापस करेगा। वैसे ही वह कर्मचारियों को रोजगार देता है। कर्मचारियों के श्रम से व्यापार करेगा। उनका मेहनताना देगा।
इसी प्रकार विभिन्न प्रकार की सेवाएं, चाहे जगह का किराया हो या बिजली हो या अन्य कोई प्रकार के खर्च हो सभी का भुगतान करेगा। बड़े दुर्भाग्य की बात है की स्वरोजगारियाें का रोजगार बंद करा दिया गया। इसके विपरित रोजगार में इस्तेमाल होने वाली सारी सेवाओं का खर्च चालू है।
ऐसी परिस्थिति में इन स्वरोजगारियाें का भविष्य क्या होगा ? यह सोचना अनिवार्य हो गया है। मेरा, कहना है की कहीं ऐसा ना हो जाए कि पहले किसान आत्महत्या कर रहे थे। अब यह स्वरोजगारी आत्महत्या करने को मजबूर हो जाएं।
क्या शासक इस ओर ध्यान दे रहा है। बैंकों के व्याज व किस्त चालू है, सरकार के टैक्स की वसूली चालू हे, समय पर कानूनी लेखा जोखा जमा कराना है। गलती हो गई तो जुर्माना। दुकान दफ्तर बंद। शासन इस ओर खामोश। हम कहां खड़े है, जरा सोचों।
मेरा तिलक राज अरोड़ा, की चिंता है की कोरोना में बहुत बड़े पैमाने पर लोगों को बीमार कर दिया। कई लोगों की मृत्यु हो रही है। मगर आमदनी के अभाव में अगर यह स्वरोजगारी लुट पाट या आत्महत्या करने को मजबूर हो गए तो क्या होगा। इस और भी सोचना समय की आवश्यकता बन गया है।