शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व देश और दुनियाभर में मनाया जा रहा है। यह पर्व 17 अक्तूबर से शुरू हुआ था और 25 अक्तूबर को समाप्त होगा। नवरात्रि की पंचमी तिथि को स्कंदमाता का पूजन किया जाता है। यह मां दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र का नाम है स्कन्द, जिन्हें कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है। भगवान स्कंद को मां पार्वती ने स्वयं प्रशिक्षित किया था। उनके इसी रूप को स्कंदमाता कहते हैं।
स्कंदमाता की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, कहते हैं कि एक तारकासुर नामक राक्षस था। जिसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र से ही संभव थी। तब मां पार्वती ने अपने पुत्र भगवान स्कन्द (कार्तिकेय का दूसरा नाम) को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने हेतु स्कन्द माता का रूप लिया और उन्होंने भगवान स्कन्द को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था। स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षिण लेने के पश्चात् भगवान स्कन्द ने तारकासुर का वध किया।
स्कंदमाता के अन्य नाम
कार्तिकेय को देवताओं का कुमार सेनापति भी कहा जाता है। कार्तिकेय को पुराणों में सनत-कुमार, स्कन्द कुमार आदि नामों से भी जाता है। मां अपने इस रूप में शेर पर सवार होकर अत्याचारी दानवों का संहार करती हैं। पर्वतराज की बेटी होने के कारण इन्हें पार्वती भी कहते हैं और भगवान शिव की पत्नी होने के कारण इनका एक नाम माहेश्वरी भी है। इनके गौर वर्ण के कारण इन्हें गौरी भी कहा जाता है।
माता स्कंदमाता के मंत्र:
1. या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
2. महाबले महोत्साहे. महाभय विनाशिनी.
त्राहिमाम स्कन्दमाते. शत्रुनाम भयवर्धिनि..
3. ओम देवी स्कन्दमातायै नमः॥
ऐसा है स्कंदमाता का स्वरूप
भगवान स्कन्द बाल रूप में माता स्कन्द की गोद में विराजित हैं। माता के इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। स्कंद मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजाएं हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कंद को गोद में पकड़े हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पुष्प पकड़ा हुआ है। मां का वर्ण पूर्णत: शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं। इन्हें विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है।