पाकिस्तान की सरकार ने कहा है कि वह दुष्कर्म की पुष्टि के लिए पीड़िताओं पर की जाने वाली टू-फिंगर जांच (टीएफटी) के पक्ष में नहीं है। वहीं, उसका सुझाव है कि यौन उत्पीड़न के मामलों में इसे चिकित्सा-कानूनी परीक्षण रिपोर्ट का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए।
डॉन न्यूज की खबर के मुताबिक, कानून एवं न्याय मंत्रालय की ओर से लाहौर में अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल चौधरी इश्तियाक अहमद खान को सरकार की इस सिफारिश के बाबत जानकारी दी गई है। अब खान संघीय सरकार के इस रुख के बारे में लाहौर उच्च न्यायालय को अवगत करवाएंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि टीएफटी ‘अवैज्ञानिक, चिकित्सीय रूप से गैर जरूरी तथा भरोसे लायक नहीं’ है। इस वक्तव्य की पृष्ठभूमि में अदालत ने कानून मंत्रालय से जवाब मांगा था।
खबर के मुताबिक, अदालत में दो जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं जिनमें टीएफटी को चुनौती दी गई है। इसमें कहा गया है कि टीएफटी ‘अपमानजनक, अमानवीय है तथा यह महिला के बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन करने वाली है।’ इससे पहले, पिछले महीने हुई सुनवाई में स्वास्थ्य संबंधी अन्य विभागों ने भी इस जांच को मेडिको-लीगल सर्टिफिकेट के प्रोटोकोल से हटाने का सलाह दी थी। इस मामले पर लाहौर उच्च न्यायालय अगले महीने के पहले सप्ताह में सुनवाई शुरू करेगा।