कुछ इन्हीं चंद शब्दों के साथ तब के अध्यापक और आज के हिंदी के महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद ने अपनी आखिरी सांस ली। यह घटना 7 अक्टूबर 1936 की शाम की है। प्रेमचंद स्मारक ट्रस्ट के संरक्षक सुरेश चंद दुबे अपने पूर्वजों द्वारा बताई गई बात को साझा करते हुए बताते हैं कि मुंशी जी के निधन के एक दिन पहले उनके कुछ मित्र उनसे मिलने के लिए शहर के रामकटोरा कुंड के पास स्थित भारतेंदु जी के मकान पर गए थे। दरअसल उस समय मुंशी जी भारतेंदु जी के मकान में किराए पर रह रहे थे। स्वास्थ्य कारणों के कारण वह रोज लमही स्थित अपने आवास पर नहीं आ रहे थे। उस शाम मुंशी जी ने अपने मित्रों से यही आखिरी वाक्य कहा था, फिर चुप हो गए।
उनके मित्रों को भी नहीं पता था कि अगले दिन यानी आठ अक्टूबर 1936 का सूरज मुंशी जी नहीं देख सकेंगे। मृत्यु के बाद उनके परिवारवालों के विलाप को सुनकर जब आसपास के लोगों ने एकत्रित भीड़ में उनके भाई और बेटों से पूछा कि किसका निधन हुआ है, तो लोगों ने बताया कि एक अध्यापक थे बीमारी के कारण उनका निधन हो गया। लेकिन उस समय लोगों को यह नहीं पता था कि वह जिसे साधारण अध्यापक समझ रहे हैं वह एक साधारण इंसान नहीं बल्कि एक महान उपन्यासकार थे। दरअसल उस समय साधन और विद्यार्थी नहीं थे। उनकी मृत्यु के बाद जब लोगों ने उनकी रचनाओं को पढ़ा तब समझ आया कि वह एक महान उपन्यासकार थे। उनकी रचनाओं की चर्चा आज सात समंदर पार में भी हो रही है। स्मारक में रखा विजिटर्स बुक इस बात की गवाही देता है कि मुंशी प्रेमचंद के साहित्य को पढऩे के लिए आज विदेशों में लोग हिंदी सीख रहे हैं।
अधूरा रह गया मंगलसूत्र
मुंशी प्रेमचंद की आखिरी रचना मंगलसूत्र जिसे वह पूरा नहीं कर पाए। अधूरी रचना में भी उन्होंने वर्तमान में लोगों को जीने का सूत्र बता दिया है। मंगलसूत्र की रचना के समय ही वह पेट की बीमारी से पीडि़त हो गए और कलम को छोड़ बिस्तर पकड़ लिया।
अपने कलम की ताकत से ”होरी” को बना गए हीरो
हिंदी को नई दिशा देने वाले मुंशी प्रेमचंद की कलम में कितनी ताकत थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने ”गोदान” उपन्यास के मुख्य पात्र रहे ”होरी” को हीरो बना दिया। इनकी रचनाओं में इंसान के अलावा जानवर और परिंदे भी पात्र रहे हैं।
नहीं रिलीज हो सकी फिल्म
मुंशी जी ने 1934 के आसपास मशहूर डायरेक्टर अजंता सिनेटोन के साथ मिलकर फिल्म ”मिल मजदूर” की कहानी लिखी थी। हालांकि देश में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के कारण फिल्म को प्रतिबंधित कर दिया गया था। प्रेमचंद की कहानियों के किरदार आम आदमी थे। उनकी कहानियों में आम आदमी की समस्याएं और जीवन के उतार-चढ़ाव परिलक्षित होते हैं। हिंदी साहित्य का यह दैदीप्यमान नक्षत्र भले ही हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका रचनाकर्म अमर है।
मुंशी प्रेमचंद पर अखिल भारतीय शोध प्रतियोगिता में ऋतु बर्णवाल रहीं प्रथम
हिंदी के सुविख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर अखिल भारतीय निबंध और शोध आलेख प्रतियोगिता का परिणाम घोषित किया गया। इसमें प्रथम पुरस्कार ऋतु बर्णवाल, द्वितीय संयुक्त रूप से सुनील नायक व नेहा चौधरी, तृतीय स्थान ब्रजेश कुमार तिवारी और सांत्वना पुरस्कार षैजू व पूर्णिमा वर्मा को मिला। वहीं विदेशी प्रतिभागियों में अजय रंजन दास का नाम शामिल था। इसके तहत पुरस्कार राशि प्रतिभागियों के खाते में ट्रांसफर की जानी है, जिसमें प्रथम को 11 हजार, द्वितीय को 7 हजार, तृतीय को 5 हजार, सांत्वना में दो हजार और विदेशी श्रेणी में तीन हजार रुपये निर्धारित किए गए हैं।