दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलावों को लेकर लगाई गई याचिका पर जवाब मांगा है।याचिका में संबंधित कानून के तहत होने वाली शादियों के लिए आपत्ति मंगाने को लेकर सार्वजनिक नोटिस के प्रावधानों को चुनौती दी गई है।
याचिका में कहा गया है कि इस तरह के सार्वजनिक नोटिस जारी करके 1 महीने का वक्त लगाने के कारण स्पेशल मैरिज एक्ट में शादी करने वाले लोगों की तकलीफ और बढ़ जाती हैं। बताया गया है कि खुद लॉ कमीशन ने यह माना है 1 महीने का वक्त स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होने वाली शादियों को हतोत्साहित करता है।
दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका रहमान की तरफ से लगाई है। सुनवाई के दौरान इस मामले में बतौर वकील पैरवी कर रहे उत्कर्ष सिंह से कोर्ट ने पूछा कि क्या कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत क्या शादी करने वाले जोड़ों को व्यवहारिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है? जिस पर याचिकाकर्ता ने बताया कि व्यवहारिक दिक्कतों के आने के कारण ही यह याचिका कोर्ट में लगाई गई है।
स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत दो अलग-अलग धर्मों के लोग शादी करते हैं शादी करने से पहले दोनों पक्षों की तरफ से कोई भी आपत्तियां दर्ज कराने के लिए 30 दिन का समय दिया जाता है। जबकि बाकी धर्मो में शादी करने वाले जोड़ों के लिए ये नियम लागू नहीं होता है।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि जब स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कोई भी जोड़ा शादी करता है तो कोर्ट में इसको लेकर हलफनामा दाखिल किए जाते हैं जिसमें व्यक्तिगत तौर पर सभी जानकारियां होती हैं। 30 दिन का वक्त यह सुनिश्चित करने के लिए दिया जाता है जिससे यह साफ हो सके कि शादी करने वाले 2 लोगों में से पहले से कोई शादीशुदा तो नहीं है, मानसिक रूप से उसे कोई परेशानी तो नहीं, या इसी तरह की कोई और व्यक्तिगत परेशानी को लेकर अगर दोनों पक्षों में से किसी के भी परिवार का सदस्य आपत्ति दर्ज करना चाहे तो स्वतंत्र होता है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि हलफनामा दाखिल करते वक्त दोनों पक्ष अपनी जानकारियां शादी से पहले कोर्ट मैरिज के दौरान देते है. ऐसे में 30 दिन का यह वक्त दिए जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। दिल्ली हाई कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई अब 27 नवंबर को करेगा।